किवदंती है कि क्षेत्र के एक गड़रिए ने इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया था, यही कारण है कि इस मंदिर को भी गडऱमल मंंदिर कहा जाने लगा। मंदिर को 1923-24 में ग्वालियर ऑर्कियोलॉजिकी सर्वे ने अपने अधीन किया था, इसके बाद यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन आ गया। मंदिर का विशाल आकार और बनावट दूर से आकर्षित करती है। इसके प्रवेश द्वार पर दो विशाल शेर मौजूद हैं। सामने ही खंबों पर टिका एक मंडप है। पिलरों पर कुछ हाथियों और देवी देवताओं की प्रतिमाएं उत्कीर्ण दिखाई देती हैं। अवशेषों से यह साफ समझ आता है कि इस भव्य मंदिर के आसपास सात और मंदिर थे, जो अब पूरी तरह ढह चुके हैं। लेकिन मंदिर का शिखर, बनावट और विशालता अब भी लोगों को आकर्षित करती है।