scriptग्वालियर घराने की आवाज बनकर देश भर में गूंजे थे गंगाप्रसाद | Ganga resonated across the country as the voice of Gwalior Gharanas | Patrika News

ग्वालियर घराने की आवाज बनकर देश भर में गूंजे थे गंगाप्रसाद

locationविदिशाPublished: Jun 20, 2021 09:18:44 pm

Submitted by:

govind saxena

जालंधर में ये कहकर बदल दी थी प्रतियोगिता की सूरत कि-संगीत आनंद का विषय है दंगल का नहीं

ग्वालियर घराने की आवाज बनकर देश भर में गूंजे थे गंगाप्रसाद

ग्वालियर घराने की आवाज बनकर देश भर में गूंजे थे गंगाप्रसाद

विदिशा. ग्वालियर में जन्मे और फिर दाते गुरुजी और भातखंडे जैसे विख्यात संगीतज्ञों के शिष्य रहे पं. गंगाप्रसाद पाठक के जीवन का आखरी समय विदिशा में ही बीता था। वे ग्वालियर घराने की आवाज बनकर देश भर में गूंजे, देश के हर बड़े संगीत सम्मेलन में उनकी गायकी जादू बनकर छाई। जालंधर के एक आयोजन में जब वे जीते तो उन्होंने यह कहकर विजयी माला पहनने से इंकार कर दिया कि संगीत जीत-हार का दंगल नहीं, बल्कि आनंद का विषय है। पाठक आज दुनियां में नहीं है, लेकिन उनकी ख्याल गायकी आज भी कोई तोड़ नहीं है। अब उनकी याद में गंगा प्रसाद पाठक ललित कला न्यास कला और संगीत विदिशा में सक्रिय है। उनके पुत्र प्रकाश पाठक भी संगीत की विरासत को आगे बढ़ाने में जुटे हैं। आज संगीत दिवस पर प्रस्तुत हैं उनके पुत्र प्रकाश पाठक द्वारा पत्रिका से साझा की गईं अपने गुणी पिता की चंद यादेंं-
ग्वालियर घराने के जाने माने गायक पं. गंगाप्रसाद पाठक का जन्म 18 अगस्त 1898 में ग्वालियर में हुआ था। गायकी में रुचि बचपन से थी और फिर उन्हें दाते गुरू जी और भातखंडे जी के सानिध्य में संगीत की शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिला। मृदंगाचार्य, ध्रुपद, धमार, ठुमरी, ख्याल, दादरा आदि विधाओं की शिक्षा प्राप्त कर वे ख्याल गायकी में पारंगत हो गए। सफर चल पड़ा और वे देश के हर बड़े संगीत सम्मेलन का हिस्सा बनने लगे। जालंधर में 150 वर्ष पहले से चल रहे हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन का जब वे हिस्सा बनकर प्रतियोगिता के सर्वश्रेष्ठ गायक चुने गए तो उन्होंने ये कहकर विजयी माला पहनने से इंकार कर दिया था कि संगीत तो आनंद का विषय है। इसमें दंगल की तरह जीत-हार को जगह नहीं। वे ग्वालियर से ख्याल गायकी के विशेषज्ञ बनकर कानपुर और फिर मुबई आ गए और रंगमंच तथा फिल्मों के लिए अपना संगीत देने लगे। लेकिन उन्हें सुकुन नहीं मिला। इसके बाद वे विदिशा आए और यहीं बस कर रह गए। विदिशा में 1958 में विदिशा संगीत विद्यालय की स्थापना भी की, जो काफी समय तक चलता रहा। विदिशा में सिंधिया परिवार में माधवराव के जन्मदिन पर युवराज क्लब में उनका खूब गायन हुआ था। विदिशा में ही सुप्रसिद्ध गायिका बेगम अख्तर के आयोजन में जब गंगाप्रसाद की गायकी ने समां बांधा और बाद में बेगम अख्तर से गाने को कहा गया तो उन्होंने ये कहकर अपनी बात समाप्त की कि-आज का गायन तो हो चुका। लोकायतन के आयोजन में भी पाठक जी ने अपनी गायकी का जादू बिखेरा। देश भर में अपनी गायन की छाप छोडऩे वाले इस गायक कलाकार ने 7 अप्रेल 1976 को अपने नियमित अंदाज में गायकी का रियाज किया और 8 अप्रेल को बिना किसी पूर्व रोग या परेशानी के चिंतामणि गणेश मंदिर की ध्वजा को प्रणाम कर चंद मिनटों में ही अपने प्राण त्याग दिए। पं. गंगाप्रसाद पाठक के दो बेटे और तीन बेटियां हुईं। पुत्र दीपक और प्रकाश दोनों को ही संगीत अपने पिता से विरासत में मिला था। दोनों के पहले संगीत गुरू भी उनके पिता ही थे। पिता के जाने के बाद भी दोनों का रियाज जारी रहा। दीपक तबले में मास्टर थे तो प्रकाश गायन में। इनकी जुगलबंदी भी खूब जमती थी। लेकिन जल्दी ही दीपक भी चल बसे और अब प्रकाश पाठक अकेले ही पिता की विरासत को संगीत कार्यक्रमों, दूरदर्शन के माध्यम से और संगीत कक्षाओं के माध्यम से आगे बढ़ा रहे हैं। उधर गंगाप्रसाद पाठक की याद को चिरस्थाई बनाने के लिए नगर के सुधिजनों ने पं. गंगाप्रसाद पाठक ललित कला न्यास का गठन किया है जो हर साल पंडित जी की स्मृति में तथा अन्य अवसरों पर गायन तथा रचनात्मक कार्यक्रमों का आयोजन करता है।
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