मिसाल बने स्वतंत्रता सेनानी
स्वतंत्रता सेनानी 95 वर्षीय रघुवीर चरण शर्मा करीब 30 लाख रुपए की सम्मान निधि शहीदों की याद सहित समाज हित में दान कर पूरे देश में मिसाल बन चुके हैं। गणतंत्र दिवस के पूर्व उन्होंने आजादी की लड़ाई के लम्हों को याद करते हुए बताया कि गांधी जी के करो या मरो… आंदोलन से प्रभावित होकर विद्यार्थी जीवन में ही आजादी की लड़ाई मेें शामिल हो गया था।
स्वतंत्रता सेनानी 95 वर्षीय रघुवीर चरण शर्मा करीब 30 लाख रुपए की सम्मान निधि शहीदों की याद सहित समाज हित में दान कर पूरे देश में मिसाल बन चुके हैं। गणतंत्र दिवस के पूर्व उन्होंने आजादी की लड़ाई के लम्हों को याद करते हुए बताया कि गांधी जी के करो या मरो… आंदोलन से प्रभावित होकर विद्यार्थी जीवन में ही आजादी की लड़ाई मेें शामिल हो गया था।
उस समय बाबू रामसहाय के घर रामकुटी पर ही मध्य भारत के बड़े नेताओं को एकत्रित कर रणनीति तय की गई थी और सरकारी मिशनरी को अहिंसात्मक तरीके से ठप करने का फैसला हुआ था।
विदिशा में हड़तालों की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई थी। तिलक चौक उस समय सारी गतिविधियों का केन्द्र बिन्दू हुआ करता था। यहीं से सारी रैलियां, सभाएं होती थीं। सबको अपने-अपने क्षेत्र में रहकर काम करने के आदेश थे।
मैं बलवंत सिंह, कमलसिंह, खुशीलाल, छोटेलाल, गणेशप्रसाद आदि गांव-गांव जाकर सरकारी मशीनरी को ठप करने और ग्वालियर स्टेट को ब्रिटिश शासन से संबंध तोडऩे के लिए दबाव बनाने अहिंसात्मक आंदोलन के लिए तैयार कर रहे थे।
13 सितम्बर 1942 को मुझे सबसे पहले गिरफ्तार किया। फिर ग्वालियर सेंट्रल जेल और मुंगावली जेल भेजा गया। सेनानी शर्मा कहते हैं कि यदि सब अपने हिस्से का काम जिम्मेदारी से करने लगें तो लोकतंत्र पूरी तरह सफल है।
5 से 50 रुपए तक का इलाज करते हैं डॉ. नवीन
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. नवीन शर्मा के क्लीनिक पर ग्रामीण क्षेत्रों से आए गरीब वर्ग के बच्चे ही ज्यादा आते हैं। कारण यह भी है कि डॉ. शर्मा उनकी परेशानियों को समझ 5 रुपए से लेकर 50 रुपए के नाममात्र के शुल्क पर न सिर्फ उनका परीक्षण करते हैं, बल्कि उसमें 2-3 दिन की दवाएं भी दे देते हैं। गरीबों के लिए सस्ता इलाज किसी बड़ी सुविधा से कम नहीं होता। यही कारण है कि कई गांवों के लोग उनसे 25-30 साल से जुड़े हैं।
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. नवीन शर्मा के क्लीनिक पर ग्रामीण क्षेत्रों से आए गरीब वर्ग के बच्चे ही ज्यादा आते हैं। कारण यह भी है कि डॉ. शर्मा उनकी परेशानियों को समझ 5 रुपए से लेकर 50 रुपए के नाममात्र के शुल्क पर न सिर्फ उनका परीक्षण करते हैं, बल्कि उसमें 2-3 दिन की दवाएं भी दे देते हैं। गरीबों के लिए सस्ता इलाज किसी बड़ी सुविधा से कम नहीं होता। यही कारण है कि कई गांवों के लोग उनसे 25-30 साल से जुड़े हैं।
डॉ. शर्मा मरीजों के परिजनों को टीकाकरण, कुपोषण और सेहत सुधारने के लिए जरूरी टिप्स सहित बहुत खराब आर्थिक स्थिति वाले मरीजों का मुफ्त इलाज भी करते हैं। डॉ. शर्मा कहते हैं कि भारतीय संस्कृति में कई तरह के दान का जिक्र है, इसमें से ही एक दान औषधि दान भी है।
मैं औषधि और उपचार के क्षेत्र में हूं, इसलिए यह दान मेरे लिए मुफीद है। वे यह भी कहते हैं कि जब मैंने मेडिकल की पढ़ाई की तो पूरे साल की फीस मात्र 250 रुपए थी, जब पढ़ाई इतने कम खर्च में हो गई तो फिर गरीबों से क्यों अनाप-शनाप पैसे लूं। डॉ. शर्मा संकल्प पुरुष के रूप में भी जाने जाते हैं, वे हर वर्ष की पहली तारीख को स्वास्थ्य अथवा समाजहित में एक संकल्प लेते और उसे शिद्दत से निभाते हैं। वे कहते हैं कि आने वाले समय में चिकित्सकों से दुव्यर्वहार की घटनाएं बढ़ रही हैं, इससे समाज का बड़ा नुकसान होगा।
अनूठी सेवा और देहदान के दूत बने विकास
पार्थिव शरीरों को मुक्तिधाम तक पहुंचाने, रेलवे ट्रेक या हादसे में शिकार हुए मृतकों के क्षत-विक्षत शवों को बटोरने का दृश्य ही जहां सिहरन पैदा करता है, वहीं यह काम शहर के युवा विकास पचौरी की यह रोजमर्रा की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है।
पार्थिव शरीरों को मुक्तिधाम तक पहुंचाने, रेलवे ट्रेक या हादसे में शिकार हुए मृतकों के क्षत-विक्षत शवों को बटोरने का दृश्य ही जहां सिहरन पैदा करता है, वहीं यह काम शहर के युवा विकास पचौरी की यह रोजमर्रा की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है।
सुबह से उनका मोबाइल बजना शुरू हो जाती है और वे कई बार जैसे जिस हाल में होते हैं वैसे ही उठकर अपनी खुद की गाड़ी से मृतक केघर पहुंचकर अंतिम यात्रा को मुक्तिधाम तक पहुंचाने निकल पड़ते हैं।
उनका नाम, उनके वाहन की धुन हे राम… और उनका मोबाइल नंबर शहर ही नहीं बल्कि जिले के अधिकांश लोगों के लिए जाना पहचाना हो गया है। विकास अब तक 1500 से ज्यादा शवों को पूरी तरह अपने खर्चे पर अंतिम संस्कार के लिए मुक्तिधाम पहुंचा चुके हैं। कई बार दूरदराज के गांव में भी उनकी यह सेवा पूरी तरह निशुल्क रहती है। रात दिन इसी काम मेें जुटे होने के बावजूद न कोई चिड़चिड़ाहट और न मनाही, फोन आते ही वे चल पड़ते हैं।
इसके साथ ही वे देहदान और नेत्रदान की अलख भी जगा रहे हैं। खुद, अपनी मां, अपनी पत्नी के देहदान संकल्प के साथ ही उनसे प्रेरित जिले के करीब 276 लोगों ने देहदान का संकल्प पत्र भरा है। विकास के सेवा कार्यों की गंूज राष्ट्रपति भवन तक पहुंच चुकी हैऔर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें सौजन्य भेेंट के लिए आमंत्रित किया था।