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विदिशा

डीएपी की किल्लत पर अधिकारियों का स्वदेशी मंत्र

उपसंचालक बोले- एनपीके ज्यादा बेहतर और स्वदेशी है उसे अपनाएं किसान

विदिशाOct 21, 2021 / 08:52 pm

govind saxena

डीएपी की किल्लत पर अधिकारियों का स्वदेशी मंत्र

डीएपी की किल्लत पर अधिकारियों का स्वदेशी मंत्र

विदिशा. रबी फसल की बुवाई का समय है। किसान डीएपी के लिए परेशान है, लेकिन उसे डीएपी खाद मिल नहीं पा रही है। जिले में मांग 25 हजार मीट्रिक टन है, उसके मुकाबले उपलब्धता मात्र 7 हजार मीट्रिक टन है। यानी ऊंट के मुंह में जीरा। ऐसे में किसानों के बोल बिगडऩे लगे हैं। हालात को संभालने के लिए अब अधिकारियों ने स्वदेशी का मंत्र फंूका है। कृषि उपसंचालक पीके चौकसे ने कहा है कि डीएपी तो विदेशी है, जबकि एनपीके ज्यादा बेहतर और स्वदेशी है, इसलिए किसान इसे अपनाएं।

डीएपी की किल्लत पर कृषि उपसंचालक चौकसे ने बताया कि जिले में डीएपी की 25 हजार मीट्रिक टन की मांग है, जिसमें से अभी सात हजार मीट्रिक टन उपलब्ध हो सकी है। यह उर्वरक विदेशों से आयात होती है, और केंद्र से भी कम ही मिल पा रही है। ऐसे में डीएपी का बेहतर विकल्प एनपीके है, जो नाइट्रोजन और फास्फोरस के साथ ही पोटेशियम की कमी को भी दूर करती है। विदिशा जिले की मिट्टी में वैसे भी पोटेशियम की काफी कमी है, इसके उपयोग से फसलों में अच्छी चमक की संभावना है। किसानों को अब डीएपी की जगह एनपीके का ही उपयोग किया जाना चाहिए, यह बेहतर और स्वदेशी विकल्प है। किसानों को अपनी सोच बदलना होगी। अभी आठ हजार मीट्रिक टन एनपीके आ रही है, वैसे डीएपी की एक रैक भी 1-2 दिन में आ रही है, जिसमें 2700 मीट्रिक टन खाद होगा, लेकिन उससे पूर्ति नहीं होगी। विकल्प तो चुनना ही होगा। वहीं चौकसे ने कहा कि जिले में यूरिया पर्याप्त है, किसानों को यूरिया तो नवंबर में जरूरत पड़ेगी अभी नहीं। यहां गौरतलब है कि बाजार में डीएपी से ज्यादा महंगी एनपीके खाद पड़ रही है, जिससे किसानों पर अतिरिक्त बोझ आना तय है।

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