डीएपी की किल्लत पर कृषि उपसंचालक चौकसे ने बताया कि जिले में डीएपी की 25 हजार मीट्रिक टन की मांग है, जिसमें से अभी सात हजार मीट्रिक टन उपलब्ध हो सकी है। यह उर्वरक विदेशों से आयात होती है, और केंद्र से भी कम ही मिल पा रही है। ऐसे में डीएपी का बेहतर विकल्प एनपीके है, जो नाइट्रोजन और फास्फोरस के साथ ही पोटेशियम की कमी को भी दूर करती है। विदिशा जिले की मिट्टी में वैसे भी पोटेशियम की काफी कमी है, इसके उपयोग से फसलों में अच्छी चमक की संभावना है। किसानों को अब डीएपी की जगह एनपीके का ही उपयोग किया जाना चाहिए, यह बेहतर और स्वदेशी विकल्प है। किसानों को अपनी सोच बदलना होगी। अभी आठ हजार मीट्रिक टन एनपीके आ रही है, वैसे डीएपी की एक रैक भी 1-2 दिन में आ रही है, जिसमें 2700 मीट्रिक टन खाद होगा, लेकिन उससे पूर्ति नहीं होगी। विकल्प तो चुनना ही होगा। वहीं चौकसे ने कहा कि जिले में यूरिया पर्याप्त है, किसानों को यूरिया तो नवंबर में जरूरत पड़ेगी अभी नहीं। यहां गौरतलब है कि बाजार में डीएपी से ज्यादा महंगी एनपीके खाद पड़ रही है, जिससे किसानों पर अतिरिक्त बोझ आना तय है।