सवाल- शमशाबाद विधानसभा में पहले आप और फिर दो बार आपकी बहू हारीं। क्या कारण मानते हैं? डॉ. यादव- यह सही है कि एक बार मैं और दो बार बहू ज्योत्सना हारे हैं, लेकिन इसके कारण बहुत स्पष्ट हैं। 1985 में शमशाबाद विधानसभा से मैं चुनाव लड़ा और जीता भी। लेकिन अगली बार मेरा टिकट काट दिया गया और वहां से गिरीश वर्मा को टिकट दे दिया गया, जो हार गए। इसके बाद वहां प्रेमनारायण शर्मा विधायक बने, जिनकी छबि संत की तरह थी, इसका नुकसान हमें अगले चुनाव में हुआ और मैं 1992 में हार गया। फिर दो बार बहू ज्योत्सना को टिकट मिला, लेकिन शमशाबाद में टिकट की घोषणा के साथ ही दावेदारों द्वारा उम्मीदवार और कांग्रेस में बत्ती देने की परंपरा है। यही दोनों बार हुआ और ज्योत्सना सबसे काबिल होते हुए भी हार गईं।
सवाल- पिछले चुनाव में कांग्रेस दावेदारों ने मंदिर में कांग्रेस के पक्ष में रहने की कसम खाई थी? डॉ यादव- बिल्कुल सही है। दुर्गा मंदिर में कांग्रेस के सभी प्रमुख दावेदारों ने कसम खाई थी कि टिकट किसी को भी मिले, सभी मिलकर कांग्रेस को जिताने का काम करेंगे। लेकिन हुआ इसके बिल्कुल विपरीत। ज्योत्सना का टिकट फायनल होते ही कसम खाने वाले ये ही सब दावेदार कांग्रेस को हराने और पार्टी में बत्ती देने में जुट गए। दुख तो इस बात का है कि ऐसे कांग्रेसियों पर संगठन भी कोई कार्रवाई नहीं करता।
सवाल- ज्योत्सना की हार को यादवों के आतंक का कारण क्यों माना जाता है? डॉ यादव- हां सही है, ऐसा माहौल बनाया गया था। जब जब टिकट मिला है तो कांग्रेस के ही अन्य दावेदारों ने यह माहौल बनाया कि इनके विधायक बनते ही यादव समाज के लोग दबंगी बताएंगे, इसलिए इनको हराना है। इसका फायदा विपक्षी भाजपा ने भी खूब उठाया। लेकिन कोई बता दे कि यादव समाज ने पिछले लंबे समय से किसी बड़े विवाद, दंगे या माहौल खराब करने का प्रयास किया हो। चुनाव के समय साजिश के तहत ऐसा माहौल बनाया जाता है।
सवाल-क्या आप ज्योत्सना को फिर उम्मीदवार के रूप में देखते हैं? डॉ यादव- बिल्कुल, मेरी बहू आज भी शमशाबाद में सबसे उपयुक्त उम्मीदवार है। विधानसभा क्षेत्र के हर घर से हर गांव से, हर कार्यकर्ता से उसका जीवंत संपर्क है। वह गंभीर है, सक्रिय हैं, पढ़ी लिखी है। शेष जो लोग टिकट मांगते हैं, उनको तो चुनाव लडऩे का सिस्टम तक नहीं पता।
सवाल- आपने एमबीबीएस किया, फिर चिकित्सा छोड़ राजनीति में कैसे आए? डॉ. यादव- मैंने छात्र जीवन से ही राजनीति में आने का लक्ष्य बना लिया था, मैं ग्रामीण क्षेत्र से आता हूं और उस समय राजनीति में शहरी तथा पढ़े लिखे लोगों का वर्चस्व था। इसलिए मन में था कि डिग्री लेकर ही राजनीति में आऊंगा तो बात ज्यादा सुनी जाएगी। उसी दौरान मेंडिकल में चयन हुआ, तो एमबीबीएस पूरा किया। इलाज तो करना ही नहीं था, राजनीति करना थी, खूब की।
सवाल-आपका जिला पंचायत अध्यक्ष का कार्यकाल काफी चर्चित रहा है? डॉ यादव- हां, बहुत बढिय़ा कार्यकाल रहा। उस चुनाव में भी कांग्रेसियों ने भितरघात किया, बड़े संघर्ष के बाद मैं एक वोट से जीता था। फिर ऐसा काम किया कि पूरे प्रदेश में विदिशा जिला पंचायत सर्वश्रेष्ठ चुनी गई। उसे 35 लाख रुपए का पुरस्कार मिला, उसी राशि से जिला पंचायत का मौजूदा भवन बन सका है।