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विदिशा

धंसकते और जर्जर कुओं पर भी नजर जरूरी, न दोहराया जाए लालपठार

प्रशासन की नजर में नहीं हैं जिले के सैंकड़ों जर्जर और धंसकते कुएं

विदिशाJul 19, 2021 / 10:44 pm

govind saxena

धंसकते और जर्जर कुओं पर भी नजर जरूरी, न दोहराया जाए लालपठार

धंसकते और जर्जर कुओं पर भी नजर जरूरी, न दोहराया जाए लालपठार

विदिशा. लालपठार का हादसे में 11 लोगों की जलसमाधि हो गई। यह प्रशासन के लिए बड़ा संकेत हैं कि इससे पहले कि जिले में और भी कुएं ऐसे ही अभागे बनें, उन्हें सहेज लिया जाए, संवारकर उन्हें खतरे की स्थिति से उबार लिया जाए, अन्यथा जब-तब ऐसे ही हादसे होते रहेंगे और बाद में हम छाती पीटते रहेंगे। यह भी ध्यान देना होगा कि ग्रामीण क्षेत्र की बड़ी आबादी अब भी पानी के लिए ऐसे ही दूरदराज के कुओं पर वर्षों से आश्रित है, जिनकी कभी कोई देखभाल नहीं होती। ये कुएं सरकारी भी हैं और निजी भी। नगरीय क्षेत्रों में भी ऐसे धंसकते हुए कुएं कभी भी खतरा बन सकते हैं।
स्लैब नहीं, लेकिन मुड़ेर और पाट भी खतरनाक
लालपठार के कुएं पर स्लैब था, लेकिन अधिकांश कुओं में ये नहीं होता, मुड़ेेर और पानी भरने के लिए पाट होता है। कई जगह ये मुड़ेर वर्षों से जर्जर हाल में है। पाट भी जीर्णशीर्ण हो चुका है। कई जगह तो कुओं पर पानी भरने वाले पाट पर वर्षों पुराने लकड़ी के पाट या पत्थर रखे हैं। कई बार ये पत्थर हिलते हैं, जिससे हादसे की आशंका बनी रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में कुओं पर अक्सर दो-तीन लोग एक साथ भी पानी भरते हैं, और मेड़ तथा पाट पर भी कई लोग इंतजार में खड़े रहते हैं। ऐसे में एक साथ कई लोगों की जान को खतरा बना रहता है।
धंसकते पत्थर और मुड़ेर बने खतरा
ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे कई कुएं हैं जिनके पत्थर और आसपास की मिट्टी धंसककर खतरा बन रही है। मुड़ेर भी कई जगह से टूटकर जर्जर हो चुकी है। पानी भरने आए लोग इससे कभी भी हादसे के शिकार हो सकते हैं। समय रहते ऐसे कुओं को चिन्हित कराकर उनकी मरम्मत कराकर खतरे को टाला जा सकता है।
शहरों में रस्में निभाने आज भी ऐसे कुओं पर लगती है भीड़
ऐसा नहीं कि लालपठार जैसे खतरनाक कुएं सिर्फ ग्रामीण अंचल में ही हैं, इनकी शहरों में भी कमी नहीं। अंतर बस इतना है कि ग्रामीण क्षेत्र में काफी लोग इन्हीं कुओं पर निर्भर हैं और वहां भीड़ लगी रहती है, जबकि शहरी क्षेत्रों में ऐसे कुओं पर पानी की निर्भरता नहीं है। लेकिन परंपरा निभाने के लिए बच्चे के जन्म और शादी समारोहों की रस्मों के लिए अब भी इन्हीं कुओं का प्रतीक के रूप में इस्तेमाल होता है। ये वही समय होते हैं जब लोग सारी सीमाएं भूलकर एक साथ काफी संख्या में उत्सवी माहौल में ऐसे जर्जर कुओं के किनारे भी खड़े हो जाते हैं। लेकिन इससे खतरे की आशंका बनी रहती है।
आधा ढहा आरएमपी नगर का कुआं
टीलाखेड़ी रोड पर बनी आरएमपी फेस 1 कॉलोनी का कुआ पिछले करीब 15 वर्ष से लगातार ढहता जा रहा है, इसके साथ ही जमीन भी धंसकती जा रही है, नगरपालिका से लेकर कलेक्टर तक को इस बारे में बताया जा चुका है। कलेक्टर ख्ुाद नगरपालिका के प्रशासक हैं, लेकिन सर्वे कराने के बाद भी इसके पुनर्निर्माण को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। कलेक्टर का कहना था कि जल स्त्रोंतों का संरक्षण हमारी पहली प्राथमिकता है, लेकिन कथनी और करनी में समानता नहीं दिखी। ये कुआं लगातार धंसकता जा रहा है। इसके पत्थर गिरकर कुआं पुरता जा रहा है और मिट्टी भी धंसक रही है, किसी भी दिन यहां भी बड़ा हादसा हो सकता है।
महलघाट, बालाजी एवेन्यू, ब्लॉक कॉलोनी सहित अनेक कुएं
ऐसे ही पुराने और जर्जर कुओं में महलघाट के सामने वाला कुआं, बालाजी एवेन्यू के पास का कुआं और ब्लॉक कॉलोनी का कुआं भी शामिल है। जबकि ऐसे कुएं जिन पर जाल डाल दिया गया है उनमें साहू धर्मशाला के पास का कुआ भी शामिल है। इसके अलावा लगभग हर मोहल्ले में ऐसे कुए हैं जिनका कभी कभार ही उपयोग होता है। लेकिन ये कुएं खतरनाक साबित हो सकते हंै।
शमशान के पास बनाया कुआं, कोई नहीं जाता पानी भरने
गंजबासौदा में पत्थर खदानों का क्षेत्र साहबा ग्राम। यहां के शमशान घाट के पास एक कुआं बनाया गया है। लेकिन इस कुएं की जगह तय करने वालों ने यह नहीं सोचा कि ये कुआं गांव के लोगों के कितने काम आएगा। गांव से बाहर शमशान के पास इस कुएं से पानी भरने कोई नहीं जाता। महिलाएं और बच्चे सामान्यत: यहां जाने से बचते हैं। बहुत कम लोग ही यहां कभी कभार पानी भरने पहुंचते हैं। ऐसे में कुआं तो बना दिया, आंकड़ों और दस्तावेजों में कुआं बनाकर उसके नाम की लाखों रुपए की राशि खर्च हो गई, लेकिन ग्रामीणों को इसका कितना लाभ मिला यह प्रशासन ने जानने की कोशिश भी नहीं की। यही कुआं यदि सही स्थल चयन कर बनाया जाता तो ग्रामीणों को उसका भरपूर लाभ मिलता।
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