ग्रामीण ले जाते हंै ध्वज, भील बरसाते हैं पत्थर
गांव में दशहरे के दिन बीच मैदान में धर्म ध्वज लगाया जाता है। रामजी की सेना में शामिल कालादेव के ग्रामीण धर्मध्वज की परिक्रमा लगाकर उसे लेने आते हैं, लेकिन दूसरी ओर से रावण की सेना में शुमार भीलों द्वारा गोफन से उन पर पत्थर बरसाए जाते हैं। भारी पथराव के बीच रामादल के लोग ध्वज की परिक्रमा कर ध्वज को ले जाने में सफल हो जाते हैं। किसी भी स्थानीय व्यक्ति को इस पथराव में पत्थर नहीं लगता। इसके बाद रामजी के जयकारे लगाते हुए उनकी आरती उतारी जाती है और राजतिलक होता है।
गांव में दशहरे के दिन बीच मैदान में धर्म ध्वज लगाया जाता है। रामजी की सेना में शामिल कालादेव के ग्रामीण धर्मध्वज की परिक्रमा लगाकर उसे लेने आते हैं, लेकिन दूसरी ओर से रावण की सेना में शुमार भीलों द्वारा गोफन से उन पर पत्थर बरसाए जाते हैं। भारी पथराव के बीच रामादल के लोग ध्वज की परिक्रमा कर ध्वज को ले जाने में सफल हो जाते हैं। किसी भी स्थानीय व्यक्ति को इस पथराव में पत्थर नहीं लगता। इसके बाद रामजी के जयकारे लगाते हुए उनकी आरती उतारी जाती है और राजतिलक होता है।
नवाबी काल से पहले की है परंपरा
ग्राम के पूर्व सरपंच रामेश्वर शर्मा ने बताया कि कालादेव वर्तमान में भले ही दशहरे की वजह से पहचाना जाता है पर बुजुर्गों की माने तो यह सैंकड़ों साल पुरानी बस्ती है, जहां हर चीज की उपलब्धता थी। गांव के चारों ओर कई कुएं, बावड़ी थे, जिनमें से अब कुछ ही बचे हैं। सरपंच भानू प्रकाश शर्मा बताते हैं कि पत्थर मार दशहरे से कालादेव की पूरे देश में पहचान बनी है। ये परंपरा कब और कैसे पड़ी इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। लेकिन नवाबी काल से पहले से ये परंपरा चली आ रही है।
ग्राम के पूर्व सरपंच रामेश्वर शर्मा ने बताया कि कालादेव वर्तमान में भले ही दशहरे की वजह से पहचाना जाता है पर बुजुर्गों की माने तो यह सैंकड़ों साल पुरानी बस्ती है, जहां हर चीज की उपलब्धता थी। गांव के चारों ओर कई कुएं, बावड़ी थे, जिनमें से अब कुछ ही बचे हैं। सरपंच भानू प्रकाश शर्मा बताते हैं कि पत्थर मार दशहरे से कालादेव की पूरे देश में पहचान बनी है। ये परंपरा कब और कैसे पड़ी इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। लेकिन नवाबी काल से पहले से ये परंपरा चली आ रही है।
अब दशहरा मैदान में है रावण प्रतिमा
पूर्व संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने इस गांव और यहां की दशहरा संस्कृति को पहचान दिलाई। दशहरा मैदान व्यवस्थित कराकर यहां रावण की प्रतिमा बनवाई और यहां के प्राचीन कल्याणराव मंदिर को पुरातत्व विभाग में शामिल कराया। जिससे क्षेत्र की लोकप्रियता शुरू हुई।
गांव में नवरात्र के दौरान रामलीला भी होती है, जिसमें रावण का किरदार निभाने बाले हरिप्रसाद चौरसिया बताते हैं कि में लगभग 40 वर्ष से रावण का किरदार निभा रहा हंू। कालादेव से बड़ी संख्या में चौरसिया समाज के लोग बाहर गए, लेकिन वे साल में एक बार यहां जरूर आते हैं। कालादेव पहले से ही संपन्न गांवों में शुमार है। यहां वर्षों तक बड़ा पशु मेला लगता था, गांव में हायरसेकंडरी स्कूल तक पढ़ाई की व्यवस्था है। उपस्वास्थ्य केन्द्र है, गांव में खेती और मजदूरी ही मुख्य व्यवसाय है। रोजगार के लिए लोग बाहर भी जाते हैं।
गांव का मजबूत पक्ष-
1. विवाद नहीं होते, जरूरत पडऩे पर आपसी सुलह से निपटते हैं मामले।
2. अनूठा दशहरे से कालादेव की दूर तक पहचान है।
3. हायरसेकंडरी तक शिक्षा की व्यवस्था है।
4. हाट बाजार है, जिसमें कई लोगों को रोजगार मिलता है।
1. विवाद नहीं होते, जरूरत पडऩे पर आपसी सुलह से निपटते हैं मामले।
2. अनूठा दशहरे से कालादेव की दूर तक पहचान है।
3. हायरसेकंडरी तक शिक्षा की व्यवस्था है।
4. हाट बाजार है, जिसमें कई लोगों को रोजगार मिलता है।
गांव का कमजोर पक्ष
1. मेन रोड पर नहीं होने से आवागमन के पर्याप्त साधन नहीं।
2. जिला मुख्यालय से सवा सौ किमी की दूरी से होती है परेशानी।
3. पानी की कमी से खेती में उन्नति नहीं हो पा रही।
4. पुलिस चौकी नहीं होने से डर बना रहता है।