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उम्र आठ वर्ष: वजन मात्र नौ किलो, अतिकुपोषण ने घेरा

locationविदिशाPublished: May 10, 2018 05:32:01 pm

उम्र आठ वर्ष; वजन मात्र नौ किलो, अतिकुपोषण ने घेरा

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विदिशा। जिले की तहसील लटेरी में दूसरों के घर बच्चों के जन्म पर ढोल बजाकर खुशी बांटने वाले छोटू बाहट के घर में बच्चे का जन्म भी अभिशाप बन गया है। जन्म के एक साल बाद से ही वह निरंतर कमजोर होता चला गया। अब मुन्ना की उम्र ८ साल है और उसका वजन मात्र ९ किलो ५० ग्राम है। पिता अपनी इस संतान को लेकर परेशान है। जैसे-तैसे दो जून की रोटी कमा पाता है, फिर बच्चे का इलाज कहां कैसे कराए उसकी समझ से बाहर है।

आनंदपुर रोड निवासी छोटू बाहट ढोल बजाने का काम करते हैं, उनका ८ वर्ष का बच्चा मुन्ना एक वर्ष की उम्र से ही अतिकुपोषित है। वे कहते हैं कि तमाम इलाज करा लिया, लेकिन उसकी हालत में सुधार नहीं हुआ। कोई कहता है कि उसकी रीड़ की हड्डी टेड़ी हो गई तो कोई कहता है कि उसमें खून की बेहद कमी है। कर्जा लेकर जैसे-तैसे इलाज कराया, लेकिन लाभ न दिखने पर परेशान होकर पिता ने बच्चे के इलाज के सारे पर्चे ही फाड़कर फेंक दिए।

बच्चे के पिता का कहना है कि मुन्ना को अपने हाथ से खाना खिलाना पड़ता है, वह बैठ तो जाता है, लेकिन खड़ा नहीं हो पाता। इलाज कराते-कराते कर्जदार हो गया, अब हिम्मत नहीं बची। औलाद है मन नहीं मानता, लेकिन अब इलाज कराने में सक्षम नहीं बचा, बच्चे की हालत और अपनी मजबूरी पर अकेले में बैठकर खूब रो लेता हूं। ऐसे में शासन कुछ मदद कर सके तो उनका बच्चा ठीक हो सकता है।

आंगनबाड़ी की जिम्मेदारी नहीं
महिला एवं बाल विकास विभाग की परियोजना अधिकारी कृतिका व्यास को जब इस बच्चे के बारे में बताया गया तो उन्होंने कहा कि हमारा विभाग और आंगनबाड़ी ६ वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए जिम्मेदार है। चूंकि यह बच्चा ८ वर्ष का है, इसलिए इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं है।

८ वर्ष की उम्र के बच्चे का सामान्य वजन करीब २० किलो होना चाहिए। यदि बच्चे का वजन ९ किलो ५० ग्राम है, तो वह बहुत ही कम है। निश्चित तौर पर बच्चा किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त होगा।
डॉ. बीएल आर्य, सीएमएचओ विदिशा

प्रशासन कर सकता है मदद
पीडि़त बच्चा किस बीमारी से पीडि़त है और इसका कहां-कैसे बेहतर इलाज हो सकता है, इसमें जिला प्रशासन मदद कर सकता है। जिला स्तर पर कलेक्टर स्वयं इसके उपचार के लिए मदद कर सकते है। अधिक खर्च आने की स्थिति में राज्य बीमारी सहायता या अन्य किसी मद अथवा योजना से बच्चे का इलाज कराकर उसका जीवन बचाया जा सकता है। जिले के समाजसेवी भी बच्चे के इलाज का जिम्मा उठा सकते हैं।

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