6 बजे हुई आरती
करीब 200 वर्ष प्राचीन मंदिर के गर्भ गृह में भगवान की छ: बजे आरती हुई। इसके बाद करीब 7 बजे भगवान को रथ में बैठाया गया। जिस रथ में भगवान को विराजा गया था, उसे बहुत ही सुदंर तरीके से सजाया गया था। रथ को सजाने के लिए फूलों का इस्तेमाल किया गया था।
7:30 बजे प्रारंभ हुई रथयात्रा
भगवान की रथयात्रा आरती के बाद सुबह 7:30 बजे प्रारंभ हुई। जिसे भक्तों ने अपने हाथों से खीचकर भ्रमण करवाया। रथ यात्रा में मौजूद सभी लोग भगवान का रथ खीचकर उन्हें भ्रमण करवाने के लिए आतुर दिखे।
4 बजे से लगी थी भीड़?
मंदिर में भगवान की झलक पाने के लिए और रथ यात्रा का हिस्सा बनने के लिए मंदिर परिसर में सुबह 4 बजे से ही लोगों का आना शुरू हो गया था। बारिश के मौसम में भक्त मीलों दूर से दण्डवत करते हुए, भगवान की एक झलक पाने मंदिर परिसर में पहुंचे और रथयात्रा में हिस्सा लिया।
रथयात्रा की यह है मान्यता
मान्यता है कि उड़ीसा की रथयात्रा के दौरान कुछ समय के लिए वहां रथ थमता है और जगदीश स्वामी अपने भक्त माणकचन्द और उनकी पत्नी पद्मावती को दिया अपना वचन निभाने मानोरा पधारते हैं। 200 वर्ष पूर्व माणकचन्द और देवी पद्मावती भगवान के दर्शन की लालसा से उड़ीसा की जगन्नाथ पुरी के लिए दण्डवत करते हुए निकले थे, तब दुर्गम रास्तो मे लहूलुहान इन भक्तों को देख जगदीश स्वामी खुद प्रकट हुए थे और माणकचन्द जी को वचन दिया था कि हर आषाढ़ सुदी दूज को मैं मानोरा आऊंगा। तब से यहां माणकचन्द ने भगवान का मंदिर बनवाया और रथयात्रा निकलने लगी।
रथयात्रा के दौरान ऐसी है पुलिस व्यवस्था
इस बार 30 सीसीटीवी कैमरों और 300 पुलिसकर्मियों के अलावा 200 सुरक्षा समिति सदस्यों ने मेले मे सुरक्षा व्यवस्था सम्भाली। बसों को मानोरा से 2 किमी पहले ही रोक दिया गया था। रात भर मानोरा जाने वाले पदयात्रियों का तांता लगा रहा।