ग्रामीण बताते हैं कि सुषमा स्वराज हरदौट केवल एक बार ही आई हैं, वह भी गांव गोद लेने की घोषणा करने। ग्रामीण याद करते हैं उस दिन मंच पर नेता और अधिकारी मौजूद थे। सभी ने बड़ी-बड़ी बातें कीं। उसके बाद हर कोई हरदौट को भूल गया।
हरदौट एक नजर-
1600 : से अधिक आबादी
1100 : मतदाता
52 : प्रधानमंत्री आवास
सां सद मद से मदद नहीं मिलने के कारण सभी निर्माण कार्य ग्राम पंचायत के हवाले ही रहा। इससे जितना फंड मिला, उतना पंचायत ने काम कराया। मुख्य सड़क से लेकर गांव की अंदरूनी सड़कें भी बदतर हैं। गांव में हायर सेकंडरी स्कूल है, लेकिन छात्र अतिथि शिक्षकों के हवाले हैं।
गांववालों को यह नहीं पता कि उनके गांव के लिए कौन सा स्वास्थ्य अमला तैनात है। वादा यह था कि अस्पताल बनेगा और डॉक्टर भी पदस्थ किए जाएंगे, लेकिन अभी तक अस्पताल नहीं बन पाया।
पूरे गांव में जगह-जगह गंदगी के ढेर लगे हुए हैं। संक्रामक बीमारियां फैलने का खतरा बना हुआ है। स्वच्छता की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ग्राम में श्मशान घाट के निर्माण पर लाखों की राशि खर्च कर दिए जाने के बाद भी कोई व्यवस्था नहीं हैं।
बीपीएल सूची में अपात्रों के नाम
बीपीएल सूची में सैकड़ों अपात्रों के नाम हैं, जिससे पात्र हितग्राहियों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। लोगों ने कई बार बीपीएल सूची को अपडेट करने की मांग की, लेकिन जिम्मेदारों ने अनसुना कर दिया।
कागजी गोकुल गांव
हरदौट को गोकुल गांव घोषित किया गया, लेकिन यहां तो इंसानों के लिए भी पीने के पानी का प्रबंध नहीं है। पशुपालन के लिए मदद का भरोसा दिया गया था। वह भी पूरा नहीं हुआ। ऐसा ही निर्मल गांव घोषित करने के मामले में भी हुआ।
यह तमगा अभी भी कागजों में ही है। ग्राम विकास के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूर्ति ही होती रही। समस्याएं जस की तस बनी हुई है।
पेयजल संकट विकराल रूप ले चुका है। इसे हल करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किए गए हैं। आदर्श ग्राम घोषित होने के बाद भी हरदौट के हालात जस के तस हैं।– राजेन्द्र कुमार धाकड़
सांसद ने गांव को गोद लेकर छोड़ दिया। वे यहां एक बार ही आईं। बाद में अधिकारियों ने भी अनदेखी कर दी, जिससे मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलीं।
– राघवेन्द्र राय आदर्श ग्राम होने के बाद भी हरदौट की अनदेखी की जा रही है। राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर ग्रामीणों को सुविधाएं उपलब्ध कराने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किए गए।
– प्रमोद कुमार