डॉ दक्षता कहती हैं कि परिवार में सासू मां, पति और दोनों बच्चों के साथ ही बीमार ससुर हैं। बुरा वक्त तब शुरु हुआ जब दो अप्रेल को मेरी रिपोर्ट पॉजीटिव आई। तीन को पति और चार को सास-ससुर भी पॉजीटिव हो गए। मेरी रिपोर्ट पॉजीटिव होते ही दस साल के बेटे अनंत को नाना-नानी के पास छतरपुर भेज दिया। लेकिन वहां उसका मन नहीं लगा तो चार दिन बाद उसे विदिशा बुलवा लिया तथा जेठ के घर छोड़ दिया। लेकिन नन्हीं आन्या का क्या करते। दो दिन तक उसे ऊपर दादी के पास छोड़ा, पहले मैं संक्रमित हुई थी इसलिए अपने से दूर रखना था। इस दौरान आन्या का ऊपर से बुलाना, नीचे मेरे पास आने की जिद करना और न आ पाने पर रोना बहुत टीस देता था। उसे न बुला पाते थे और न देख पाते थे। उसका रोना सुनकर बस कसमसाते रह जाते थे। बाद में जब सभी संक्रमित हो गए तो न चाहकर भी आन्या को अपने पास बुलाना पड़ा। इस दौरान हम लोग तो सभी मास्क लगाकर रहते ही थे, उसे भी दिन भर घर में मास्क लगाए रहते थे। पूरी सावधानी बरतते। लेकिन बेटा अनंत अभी भी घर पर नहीं था। उसे वीडियो कॉल करते तो आन्या भैया के लिए खूब रोती, उसे किसी तरह समझा देते थे। लेकिन जब समय मिलता तो मैं खुद खूब रो लेती थी। पति की हालत भी ठीक नहीं थी, वे घबरा रहे थे। ऐसे में पूरे घर को बांधकर रखने का दौर बहुत मुश्किल का था। लेकिन खुद हिम्मत रखी, हर सदस्य ने साथ दिया। सास-ससुर ने भी सबको हिम्मत बंधाते हुए काम करने को कहा। सब अलग-अलग कमरों में रहकर वक्त से लड़े और बड़ों की दुआओं और बच्चों के प्यार से इस संकट पर जीत हासिल भी की।