कुपोषण से जूझ रहे जिले में कुछ भी ठीक नहीं है। न आंगनबाड़ी की व्यवस्थाएं, न बच्चों को पोषण, न ही पोषण पुनर्वास केन्द्रों में उनका सही वजन और इलाज। इसकी पोल तब खुली, जब मंगलवार को पत्रिका में खबर प्रकाशित होने के बाद जिला पंचायत की महिला एवं बाल विकास समिति
विदिशा. कुपोषण से जूझ रहे जिले में कुछ भी ठीक नहीं है। न आंगनबाड़ी की व्यवस्थाएं, न बच्चों को पोषण, न ही पोषण पुनर्वास केन्द्रों में उनका सही वजन और इलाज। इसकी पोल तब खुली, जब मंगलवार को पत्रिका में खबर प्रकाशित होने के बाद जिला पंचायत की महिला एवं बाल विकास समिति सभापति माधवी माथुर पोषण पुनर्वास केन्द्र और जिला अस्पताल के शिशु वार्ड में पहुंचीं। उन्होंने एक बच्चे का वजन पूछा और फिर खुद बच्चे का वजन कराया तो दोनों में करीब एक किलो का अंतर था।
सभापति माथुर जिला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केन्द्र पहुंचीं। वहां 20 पलंग पर 27 बच्चों का उपचार हो रहा था। यहां दीवारों पर भारी सीलन, कूलर बंद होने और गंदगी होने पर उन्होंने नाराजगी जताई। वहां नटेरन की बहुत कमजोर बच्ची अवनि भर्ती थी। माथुर ने वहां की फीडिंग डिमॉन्स्ट्रेटर से अवनि का वजन पूछा तो उसने 8 किलो बताया। इस पर माथुर ने आश्चर्य जताते हुए अपने सामने उसका वजन कराया जो मात्र 7 किलो निकला। यह बच्ची 24 जून को भर्ती हुई थी। तब इसका वजन 7 किलो 600 ग्राम बताया गया था। अब उसका वजन 7 किलो निकला। वजन घटने के बारे में स्टाफ का कहना था कि बच्ची को दस्त लग गए।
कोई नाश्ता नहीं मिलता बच्चों को
शिशु वार्ड में सभापति माथुर ने देखा कि वहां 25 बिस्तर पर 43 बच्चे दाखिल थे। हर पलंग पर दो-तीन बच्चे भर्ती थे। किसी भी पलंग पर चादर नहीं बिछी थी। वार्ड में भारी गंदगी थी। यहां पेढ़ी क्षेत्र निवासी वसीमा बी ने बताया कि उनका पुत्र अजमत दो दिन से भर्ती है, लेकिन कोई बैड शीट नहीं मिली। यहां मरीज को केवल सुबह 400 ग्राम दूध और 5 रुपए के बिस्किट का पैकेट दिया जाता है। इसके बाद दिन भर कोई नाश्ता, खाना नहीं मिलता। बड़े बच्चों के लिए भी यही व्यवस्था है। नर्स ने उन्हें बताया कि जो खाने की मांग करते हैं उनकी पर्ची भेजी जाती है। माथुर ने पूछा कि जनवरी से अब तक छह माह में कितने लोगों के खाने की पर्ची भेजी तो उसका जवाब ड्यूटी नर्स नहीं दे सकीं। उन्हें रिकार्ड भी नहीं मिला।
सभापति के बुलाने पर न सिविल सर्जन आए और न ही डीपीओ
सभापति माथुर एनआरसी और शिशु वार्ड में एक-एक पलंग पर गईं। उन्होंने पूछताछ भी की। सिविल सर्जन को भी बुलवाया, लेकिन न सिविल सर्जन आए और न ही महिला एवं बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी। शिशु वार्ड में भी प्रभारी उन्हें नहीं मिले। न ही एनआरसी के प्रभारी डॉ. उदय तोमर मिले। इस मौके पर सभापति माधवी माथुर के साथ सांसद प्रतिनिधि डॉ. संजीव माथुर, विजयपाल सिंह तथा लालाराम चौधरी मौजूद थे।
्रसुबह पत्रिका में कुपोषित बच्चों की खबर पढ़ी थी। पता चला यहां एक पलंग पर कई-कई बच्चे हैं। हालात देखे हैं, अधिकारियों को व्यवस्था के निर्देश दिए जा रहे हैं। जिले के तीन बंद पोषण पुनर्वास केन्द्र लटेरी, नटेरन और त्योंदा को जल्दी चालू कराया जाएगा। जिला चिकित्सालय की व्यवस्थाएं आपत्तिजनक हैं।
माधवी माथुर, महिला एवं बाल विकास सभापति, जिला पंचायत