उन्होंने कहा कि अपने पुण्य को क्षीण न होने दें। यदि आपने अपने पास वाला पुण्य अपने पड़ौसी को दे दिया, तो आपके हाथ में आया हुआ पुण्य तो निकल ही जाएगा साथ ही वह आपके उस पुण्य को भी साथ ले जाएगा जो अभी तक आपके पास था।
मुनिश्री ने कहा कि हिन्दी वर्णमाला में ऐसा कोई अक्षर नहीं जिसमें मंत्र बनने की शक्ति न हो, प्रकृति में ऐसी कोई वनस्पति नहीं जिसमें औषधि बनने की क्षमता न हो, लेकिन जरूरत होती है उन अक्षरों के संयोजन और वनस्पति के औषधि गुणों को पचानने की। जो इसका संयोजन कर लेता है वह अच्छा विद्वान और अच्छा वैद्य बन जाता है। इसी तरह ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसमें कोई विशेषता न हो। हर व्यक्ती में कोई न कोई योग्यता या विशेषता होती है, लेकिन उसको पहचान कर उस व्यक्ति की क्षमता अनुसार उस कार्य को जिम्मेदारी के साथ संयोजना करने वाला व्यक्ति ही संयोजक कहलाता है।
मुनि श्री ने कहा कि कार्य कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता, उसकी उचित संयोजना होंना चाहिए, उचित संयोजना से बड़े से बड़ा काम भी कम श्रम से पूर्ण हो जाता है। जबकि आलस और प्रमाद से छोटे काम भी असफल हो जाते हैं।