ऐसे ही एक प्रकरण में उच्च न्यायालय ( ग्वालियर बैंच ) का आदेश साथ लेकर संस्थान केे रिटायर्ड प्राध्यापक जनसुनवाई में कलेक्टर के पास पहुंचे और मदद की गुहार लगाई। एसएटीआइ से 2012 में रिटायर हुए प्रो. सुभाष चंद्र जैन, 2013 में रिटायर प्रो. एससी सक्सेना और 2014 में रिटायर हुए प्रो. एसके सिंघई ने इस संबंध में कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह से गुहार लगाई। प्रो. सिंघई ने बताया कि 5-7 साल पहले रिटायर हो जाने के बाद भी एसएटीआइ हमारी ग्रेच्यूटी और लीव एनकैशमेंट की राशि का भुगतान नहीं किया जा रहा है।
हममें से प्रत्येक की गे्रच्यूटी करीब 10 लाख बनती है, जिसमें से अब तक मात्र 3.50 लाख ही दी गई है। जबकि लीव एनकैशमेंट की राशि करीब 12 लाख रुपए बनती है जो दी ही नहीं गई। प्रो. सिंघई बताते हैं कि जब हमने हाइकोर्ट में प्रकरण लगाया तो अदालत ने 3 माह में क्लेम्स के भुगतान के आदेश दिए।
इसके बाद एसएटीआइ डायरेक्टर ने रिव्यू पिटीशन दायर की तो डायरेक्टर एसएटीआइ सहित एमजेइएस के चेयरमैन ज्योतिरादित्य सिंधिया, डायरेक्टर तकनीकी शिक्षा संचालनालय तथा मप्र शासन के प्र्रमुख सचिव को भी पक्षकार बनाया। इसमें सरकार का कहना था कि हम संस्थान को ग्रांट देते हैं उसमें से ही भुगतान किया जाना चाहिए। अतिरिक्त ग्रांट भी दी गई है। लेकिन फिर भी संस्थान भुगतान नहीं कर रहा है। मप्र शासन के सचिव और डायरेक्टर तकनीकी शिक्षा ने भी कहा है कि अदालत के निर्देशों के पालन में राशि का भुगतान किया जाए।
लेकिन राशि का भुगतान नहीं हो पा रहा है। अब हाइकोर्ट ने इस बारे में आदेश पारित कर कहा है कि तीन माह के भीतर यदि इन रिटायर्ड कर्मचारियों के स्वत्वों का भुगतान नहीं किया गया तो यह राशि 8 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करना होगी।
प्रो. सिंघई का आरोप है कि इसके बाद भी एसएटीआइ हमारे स्वत्वों का भुगतान नहीं कर रहा है। ऐसे में अब वे कलेक्टर से इस मामले में हस्तक्षेप की गुहार लगाने आए हैं।