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उदयपुर की 849 हैक्टेयर वनभूमि राजस्व को हस्तांतरित करने का फिर प्रस्ताव

राजस्व भूमि होने पर लग सकेगा अवैध कारोबार पर अंकुश

विदिशाFeb 27, 2021 / 09:03 pm

govind saxena

उदयपुर की 849 हैक्टेयर वनभूमि राजस्व को हस्तांतरित करने का फिर प्रस्ताव

विदिशा. उदयपुर की जिस वन भूमि पर खदानें वैध न होने से अवैध उत्खनन का कारोबार वर्षों से बेखौफ चल रहा है, उन्हें वैध करने का रास्ता निकालने का प्रयास भी 28 वर्ष पूर्व हुआ था। उदयपुर क्षेत्र की 849 हैक्टेयर वन भूमि को राजस्व भूमि में परिवर्तित करने का प्रस्ताव 1993 में तैयार हुआ था, लेकिन सार्थक प्रयासों के अभाव में यह कार्य मूर्त रूप नहीं ले सका। अब जब पत्रिका ने ये मुद्दा प्रमुखता से उठाया है तो चौतरफा फिर हड़कंप है। प्रशासन ने इस प्रस्ताव का पुन: स्मरण कराने के लिए शासन को पत्र लिखने का मन बना लिया है। इस हस्तांतरण का मतलब यह है कि अगर ये 849 हैक्टेयर वन भूमि राजस्व को अंतरित की जाएगी तो इसके बदले में इतनी ही राजस्व भूमि वन विभाग को भी राजस्व विभाग द्वारा दी जाएगी। लेकिन मुसीबत ये है कि जिले में इतनी राजस्व भूमि उपलब्ध ही नहीं है जो वन विभाग को दी जा सके।
मार्च 1993 में सचिवालय में खनिज विभाग के प्रमुख सचिव, खनिज और वन विभाग के उच्च अधिकारियों की बैठक हुई थी, जिसमें यह तय हुआ था कि गंजबासौदा क्षेत्र के 25 वनखंडों के करीब 4 हजार हेक्टेयर क्षेत्र वनविहीन है, जिसमें जंगल लगाया नहीं जा सकता, जो पत्थर खदानों के लिए उपयुक्त है, उसे राजस्व विभाग को हस्तांतरित करने के लिए प्रस्ताव शासन को भेजा जाए। इसके बाद वनसंरक्षक भोपाल, कलेक्टर विदिशा और प्रभारी अधिकारी संचालनालय भौमिकी तथा खनिकर्म भोपाल की समिति गठित कर अक्टूबर 1994 में मौका मुआयना किया गया और 7 वनखंडों की 855 हैक्टेयर वनभूमि का हस्तांतरण प्रस्तावित किया। बाद में वनमंडलाधिकारी विदिशा ने 855 की जगह 849 हैक्टेयर वनभूमि उपलब्ध होना बताया गया।
आसपास के जिलों से भी मांगी थी जमीन
वनभूमि के बदले तहसील बासौदा, लटेरी और कुरवाई में वन विभाग को हस्तांतरण के लिए राजस्व की भूमि न होना बताया गया। इसके बाद जिले में भूमि न होने से नजदीक के जिलों रायसेन, भोपाल, राजगढ़, सागर, अशोकनगर और गुना के कलेक्टर को 2005 में पत्र लिखे गए थे, लेकिन इसका भी कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला है।
1980 के पहले थीं यहां 63 वैध खदानें
सरकारी दस्तावेज कहते हैं कि 1980 के पहले यहां 63 खदानें स्वीकृत होकर क्रियाशील थीं जो बाद में वन संरक्षण अधिनियम 1980 के लागू हो जाने के कारण बंद कराई गई थीं। लेकिन हकीकत यह है कि कागजों में वैध खदानें तो वन भूमि पर खत्म हो गईं, लेकिन यहां के पत्थर के लालच में खनन से जुड़े लोगों ने अपना कारोबार बंद नहीं किया और जो काम पहले वैध होता था वह 1980 के बाद से अवैध तरीके से चलने लगा।
डीएफओ पहुंचे क्षेत्र में
डीएफओ राजवीर सिंह ने बताया कि शनिवार को वे उदयपुर क्षेत्र में पहुंचे थे, लेकिन पत्रिका में खबर प्रकाशित होने के बाद पत्थर कारोबारी मौके से भाग चुके हैं। डीएफओ ने भिलायं चौकी में अपने स्टॉफ की बैठक ली और पत्थर खनन पर अपनी रणनीति से अवगत कराया। डीएफओ ने बताया कि स्टॉफ से क्षेत्र की साप्ताहिक रिपोर्ट देने के साथ ही नकेल कसने के तरीकों पर भी बात हुई है। जल्दी ही कार्रवाई होगी।

बेहतर है कि खदानें वैध हो जाएं-कलेक्टर
इस मामले में कलेक्टर डॉ. पंकज जैन कहते हैं कि खदानें नियमित हो सकें उसके लिए वन भूमि को राजस्व भूमि में अंतरित करना आवश्यक है। कई वर्ष पूर्व प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन अब फिर इसका रिमांइडर भेज रहे हैं। अवैध कारोबार से तो बेहतर है कि खदानों को वैध कर उन्हें बेहतर तरीके से संचालित किया जाए। इससे लोगों के रोजगार की समस्या भी नहीं रहेगी और शासन को राजस्व भी मिलेगा। लेकिन वन भूमि के बदले 849 हैक्टेयर राजस्व जमीन देना मुश्किल काम है। इतनी जमीन उपलब्ध ही नहीं है।

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