विदिशा

रैन बसेरा अव्यवस्थित, मुश्किल से गुजरती ठंडी रातें

नपा की जगह अब एनजीओ के जरिए होगा रेन बसेरा का संचालन

विदिशाDec 05, 2019 / 01:55 pm

Bhupendra malviya

रैन बसेरा अव्यवस्थित, मुश्किल से गुजरती ठंडी रातें

विदिशा। सर्द रातों का दौर शुरू हो गया, सर्द हवाएं पक्के घरों में भी परेशान करने लगीं हैं, लेकिन बिना छत के रहने वाले गरीबों को शहर के इकलौते रैन बसेरा में भी ठौर नहीं मिल पा रहा है। ठीक से संचालन न हो पाने से अब नपा से रैन बसेरा का संचालन छीनकर एनजीओ को सौंपा गया है। लेकिन अभी तक रैन बसेरा की व्यवस्थाएं दुरस्त नहीं हो पाईं हैं। अधिकांश लोगों को पता भी नहीं है कि कहां है विदिशा का रैन बसेरा।


यही कारण है कि मजबूर लोगों की सर्द रातें भी रेलवे स्टेशन, बस स्टेंड, अस्पताल के परिसर में या फिर यहां-वहां गुजर रही हैं। मालूम हो कि बस स्टैंड के निकट वर्ष 2013 में केंद्र सरकार की योजनांतर्गत इस रैन बसेरा का लोकार्पण हुआ था।


उद्देश्य यही था कि रात में बसें व ट्रेन न मिलने पर या किसी कारण से कोई भी गरीब व्यक्ति रात में रुकने के लिए परेशान न हो। उसे ठहरने का उचित स्थान मिल सके, लेकिन लोकार्पण के छह वर्ष बाद भी इस सुविधा को प्रचारित नहीं किया गया। फलस्वरूप जानकारी के अभाव में बहुत कम लोग ही इसका उपयोग कर पाए।

 

40 पलंग की है व्यवस्था
इस भवन में पुरुष व महिलाओं के लिए दो अलग-अलग बड़े हॉल है। दोनों ही हॉल में महिला एवं पुरूषों के लिए 20-20 पलंग की व्यवस्था है। सिर्फ आधार कॉर्ड या वोटर आईडी कॉर्ड के आधार पर रजिस्टर में इनका नाम पता लिखने के बाद इन्हें इस भवन में निशुल्क ठहराने की व्यवस्था थी।

सुविधा के लिए टीवी व अन्य सुविधाएं भी
भवन में मौजूद रही और सीसीटीवी भी लगवाए गए पर नगरपालिका इसका संचालन ठीक से नहीं कर पाई। अभी इस हाल में रैन बसेरा वर्तमान में रैन बसेरा बुरे हॉल में है। टीवी खराब है। पलंग पुराने और जंग लगे हैं। गद्दे व कंबलों की हालत भी ठीक नहीं। सिर्फ पुरुष हॉल में पलंग है, जबकि महिला हॉल में दो परिवार स्थायी रूप से तीन वर्ष से रह रहे।

घर दिए जाने की मांग की
यहां निवासरत परिजनों में अजय विश्वकर्मा का कहना है कि पंसारी मिल में उनका मकान तोड़ दिया गया था तब से नपा उन्हें रैन बसेरा में रहने का स्थान दिया। अब नगरपालिका यहां से हमें हटा रही। दो बच्चियां 9वीं 11 वीं पढ़ रही। किराए से रहने की व्यवस्था नहीं। ऐसे में यहां से हटाया गया तो बच्चियों की पढ़ाई कैसे हो पाएगी। वहीं दूसरे परिवार के संतोष कुशवाह का कहना है कि वह बस स्टैंड के एक कक्ष में परिवार के साथ रहता था। उसे वहां हटा कर रैन बसेरा में रहने को स्थान दिया। इन परिवारों ने कहीं जगह देने या आवास योजना में उन्हें घर दिए जाने की मांग की है।

पांच-छह लोग ही लाभ ले पा रहे
रैन बसेरा का संचालन ठीक से नहीं होने के कारण अब इसकी कमान भोपाल के एक एनजीओ के हाथ में सौंपी है, लेकिन फिलहाल पांच-छह लोग ही इसका लाभ ले पा रहे। नपा कर्मचारियों के मुताबिक रैन बसेरा के संचालन की राशि केंद्र से आती है। समय-समय पर नपा रैन बसेरा का निरीक्षण करेगी। वहीं एनजीओ के कर्मचारी जगदीश चौधरी ने बताया कि नपा द्वारा अभी भवन की मरम्मत व पुताई कराई जा रही है। उनके मुताबिक 28 नवंबर से कार्य संभाला। इस दौरान 28 नवंबर को 6 लोग रुके, 29 नवंबर को 4, 30 नवंबर को 6, 1 दिसंबर को 2 एवं 2 दिसंबर को 4 लोग रैन बसेरा में रुके हैं।


रेलवे स्टेशन, अस्पताल परिसर ही सहारा
रैन बसेरा सुविधा की जानकारी न होने के कारण अधिकांश लोग रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, अस्पताल परिसर, पुटपाथ आदि पर ही रात गुजारने के लिए मजबूर हैं। अस्पताल में भर्ती मरीज के परिजन बाहर परिसर में दवा एवं पंजीयन कक्ष के पास बने शेड के नीचे तो कुछ समीप बनी मेडिकल दुकानों की शेड में रात गुजारते हैं। वहीं अधिकांश लोग रेलवे स्टेशन के मुसाफिर खाने में भी रात गुजारने के लिए मजबूर बने हुए हैं।

रैन बसेरा को पहले से ज्यादा बेहतर एवं इसका सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। रैन बसेरा के सभी पुराने पलंग, गद्दे आदि बदले जाएंगे। अधिक से अधिक लोग इसका लाभ लें ऐसे प्रयास किए जाएंगे।
सुधीरसिंह, सीएमओ

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