मोहक गायन और चंचल स्वभाव के साथ जयश्री राम के उद्घोष
पं. अभिषेक कृष्ण अपने भाई शरद के बारे में बताते हैं कि मोहक तथा गंभीर गायन के साथ ही शरद का चंचल स्वभाव, खाने-पीने में भारी रूचि के अलावा मंच पर जय श्रीराम के उद्घोष से उनकी उपस्थिति ही उनकी पहचान बनी। वे मंच पर जयश्री राम के उद्घोष के साथ ही आते थे, हर शो में उनके माथे पर तिलक और सिर पर शिखा यानी चोटी अवश्य रहती थी। यह शरद और हमारे सनातन धर्म की पहचान है। शरद के जयश्री राम के उद्घोष का असर इतना था कि उनके मंच पर पहुंचते ही जज खुद ही जयश्री राम कहने लगते थे। जब फायनल मुकाबले के बाद शरद शर्मा मुंबई के एक मॉल में पहुंचे तो वहां सैंकड़़ों लोगों ने उनके साथ सेल्फी ली और वहां भी जयश्री राम गूंज उठा।
दुनिया में अपनी आवाज पहुंचा सका-शरद
परिणाम घोषित होने के बाद शरद के बड़े भाई पं. अभिषेक कृष्ण के अनुसार शरद का यही कहना है कि प्रथम या द्वितीय मायने नहीं रखता। मुझे इस बात से ही अत्यंत खुशी है कि इतने बड़े मंच पर मुझे गायन का मौका मिला और मैं अपनी आवाज दुनियां तक पहुंचा पाया। वहीं स्वयं अभिषेक कृष्ण कहते हैं कि शरद ने 7 वर्ष की उम्र से ढोलक, फिर तबला और बैंजो सीखा और बाद में गायकी शुरू की। मैं उसकी संगीत यात्रा का शुरू से निरीक्षक और परीक्षक रहा हूं। गंजबासौदा जैसे छोटे से शहर से दुनियां के इस मंच पर जगह बनाना आसान नहीं है। शरद कहता है कि संगीत ही मेरा जीवन है। शरद और संगीत दो नहीं एक ही हैं।
पं. अभिषेक कृष्ण अपने भाई शरद के बारे में बताते हैं कि मोहक तथा गंभीर गायन के साथ ही शरद का चंचल स्वभाव, खाने-पीने में भारी रूचि के अलावा मंच पर जय श्रीराम के उद्घोष से उनकी उपस्थिति ही उनकी पहचान बनी। वे मंच पर जयश्री राम के उद्घोष के साथ ही आते थे, हर शो में उनके माथे पर तिलक और सिर पर शिखा यानी चोटी अवश्य रहती थी। यह शरद और हमारे सनातन धर्म की पहचान है। शरद के जयश्री राम के उद्घोष का असर इतना था कि उनके मंच पर पहुंचते ही जज खुद ही जयश्री राम कहने लगते थे। जब फायनल मुकाबले के बाद शरद शर्मा मुंबई के एक मॉल में पहुंचे तो वहां सैंकड़़ों लोगों ने उनके साथ सेल्फी ली और वहां भी जयश्री राम गूंज उठा।
दुनिया में अपनी आवाज पहुंचा सका-शरद
परिणाम घोषित होने के बाद शरद के बड़े भाई पं. अभिषेक कृष्ण के अनुसार शरद का यही कहना है कि प्रथम या द्वितीय मायने नहीं रखता। मुझे इस बात से ही अत्यंत खुशी है कि इतने बड़े मंच पर मुझे गायन का मौका मिला और मैं अपनी आवाज दुनियां तक पहुंचा पाया। वहीं स्वयं अभिषेक कृष्ण कहते हैं कि शरद ने 7 वर्ष की उम्र से ढोलक, फिर तबला और बैंजो सीखा और बाद में गायकी शुरू की। मैं उसकी संगीत यात्रा का शुरू से निरीक्षक और परीक्षक रहा हूं। गंजबासौदा जैसे छोटे से शहर से दुनियां के इस मंच पर जगह बनाना आसान नहीं है। शरद कहता है कि संगीत ही मेरा जीवन है। शरद और संगीत दो नहीं एक ही हैं।