scriptसिरोंज के पुरातत्व स्मारक में 1500 छात्राओं का स्कूल | School of 1500 girl students in the Archaeological Monument of Sironj | Patrika News

सिरोंज के पुरातत्व स्मारक में 1500 छात्राओं का स्कूल

locationविदिशाPublished: Nov 28, 2021 08:29:33 pm

Submitted by:

govind saxena

जर्जर छज्जे, चमगादड़ों का डेरा, संकरे रास्ते और उनमें छात्राएं

सिरोंज के पुरातत्व स्मारक में 1500 छात्राओं का स्कूल

सिरोंज के पुरातत्व स्मारक में 1500 छात्राओं का स्कूल

विदिशा. सदियों पुराने ऐतिहासिक भवनों को ही पुरातत्व विभाग अपने अधीन करता है। उसे केवल सहेजने और पर्यटन की दृष्टि से ही रखा जाता है। लेकिन सिरोंज के राज्य पुरातत्व विभाग संरक्षित स्मारक रावजी की हवेली में डेढ़़ हजार से ज्यादा छात्राओं का स्कूृल संचालित है। नीचे ही नहीं, मात्र दो फीट चौड़ी 10 से ज्यादा सीढिय़ांं चढकऱ दूसरे मंजिल पर भी छात्राएं कक्षा में आती-जाती हैं। छुट्टी होते ही वे झुंड के रूप में उतरती हैं। किसी दिन कोई हादसा हो तो निकलने का कोई सुलभ रास्ता भी नहीं है। हवेली के कुछ कमरों में तो चमगादड़ों, कबरबिज्जुओं का भी डेरा है। सुरंगों में हड्डियों के अवशेष इसके प्रमाण भी हैं। फिर भी ऐसे शिक्षा विभाग, पुरातत्व विभाग और जिला प्रशासन सब खामोश बैठे हैं।
जर्जंर इमारत में पढ़ती हैं 1515 छात्राएं
पुरातत्व विभाग के अधीन इस 17-18 वीं शताब्दी के मध्य में बनी इस प्राचीन इमारत की मरम्मत भी हुई है, लेकिन काफी हिस्सा अभी भी जर्जर और खतरनाक है। फिर भी इसमें कक्षा 1 से 12 तक की 1515 छात्राएं पढ़ रही हैं। सबसे ज्यादा छात्राएं 9 से 12 वीं तक की हैं। इनकी संख्या 1222 है। ये तो मुख्य रूप से मुख्य हवेली में ही पढ़ती हैं। निचली मंजिल में जगह न होने से अब इन छात्राओं को ऊपरी मंजिल पर बैठाया जाता है। जिनके कक्षों में फर्नीचर तक नहीं है और तहसील मुख्यालय के इस सरकारी हायरसेकंडरी स्कूल भवन में उन्हें टाटफट्टी पर बैठना पड़ता है।
बारादरी और पत्थर का फव्वारा
परिसर में ही बारा द्वार वाला एक छोटा सा मंडप है और उसके ही ठीक सामने पत्थर का विशाल फव्वारा। लेकिन अब ये सिर्फ विरासत है। यहां स्कूल की छात्राएं खेलती हैं। मुख्य द्वार पर हाथी और हाथी सवारों की प्रतिमाएं अंकित हैं। नक्काशीदार यह मुख्य द्वार बंद कर दिया गया है।
अब बंद कर दिया गया है गुप्त रास्ता
जानकारों का मानना है कि हवेली में संकट के समय चुपचाप बाहर निकलने के लिए सुरंग भी थी, जो हवेली के पीछे खुलती थी। इसके प्रमाण आज भी मौजूदू हैं, लेकिन सुरक्षा कारणों से इसे बंद कर दिया गया है
चमगादड़ों और कबरबिज्जू का डेरा
जिस हिस्से में हायरसेकंडरी स्कूल संचालित हो रहा है, उसी के एक हॉल में चमगादड़ों का डेरा मौजूद है। छत पर बहुत से उनके डेरे हैं। जबकि इन्हीं में से एक हॉल में सुरंगनुमा एक हिस्से में यहां के लोग कबरबिज्जू का डेरा बताते हैं। सुरंग समझकर जब वहां लाइट से देखा गया तो उसमें हड्डियों के कुछ अवशेष साफ दिखाई दिए।
हादसे में नहीं है कोई आपात रास्ता
सबसे ज्यादा फजीहत दूसरी मंजिल पर पढऩे वाली खासकर नवीं कक्षा की छात्राओं की है। यहां छात्राओं को फर्नीचर भी नसीब नहीं है और अधिकांश छात्राएं टाटफट्टी पर बैठती हैं। नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे जाने का रास्ता बहुत संकरा और अंधेरे वाला है, ये करीब 10-12 सीढिय़ां हैं। रास्ता मुश्किल से 2 फीट चौड़ा है, जिसमें छुट्टी के बाद छात्राएं एकसाथ जब झुंड बनाकर निकलती हैं तो हादसे की आशंका बनी रहती है। सबसे खास बात यह भी कि दुर्भाग्य से यदि कभी कोई हादसा हो जाए तो जल्दबाजी में इस संकरे रास्ते के अलावा कोई रास्ता भी छात्राओं को निकालने का नहीं है।

नहीं पढ़ाया जाता जिले का इतिहास
यह विडंबना ही है कि देश-दुनियां की बातें स्कूलों के कोर्स में हैं, इनमें से अधिकांश से बच्चों का जीवन भर वास्ता नहीं पड़ता, लेकिन उन्हें उस जिले, शहर और गांव का ही इतिहास नहीं पढ़ाया जाता जो उनके जन्म से और शिक्षा से जुड़ा है। रावजी की हवेली का किस्सा भी ऐसा ही है। यहां की छात्राओं को नहीं पता कि वे रावजी की हवेली नाम की जिस ऐतिहासिक इमारत में पढ़ रही हैं, वे रावजी कौन थेे? यह किसकी हवेली थी। सिरोंज और विदिशा जिले के अधिकांश लोग इससे अनभिज्ञ हैं। रावजी पथ भी सिरोंज में है, लेकिन रावजी कौन यह बहुत कम लोग ही बता पाते हैं।
मल्हारराव के प्रतिनिधियों की थी हवेली
सिरोंज की यह रावजी की हवेली होल्कर रियासत के प्रतिनिधियों की वह इमारत थी, जहां से सिरोंज क्षेत्र का सरकारी कामकाज चलता था। देवी अहिल्या के ससुर मल्हारराव होल्कर, पति खांडेराव और सेनापति तुकोजी राव के प्रतिनिधि और खासकर तुकोजी का यहां आना और यहीं से उनके सारे काम संचालित होना माना जाता है। उन्हीं के नाम से इसे रावजी की हवेली कहा जाता था। अहिल्याबाई ने सिरोंज में नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया था। लेकिन ये इतिहास सिरोंज ही नहीं जिले के किसी भी स्कूल में नहीं पढ़ाया जाता।
वर्जन…
रावजी की हवेली में वर्षों से यह कन्या शाला संचालित है। यहां 1515 छात्राएं हैं, अकेले नवीं में ही 250 छात्राएं हैं। जगह की दिक्कत है, इसलिए टाटफट्टी पर बैठना पड़ता है। हमें पांच कक्षों की आवश्यकता है।
-उमेश सोनी, प्राचार्य शासकी कन्या उमावि सिरोंज


किसी भी पुरातात्विक स्मारक में शिक्षण संस्थान संचालित नहीं किया जा सकता। संस्थान पहले से संचालित हो और बाद में उसे संरक्षित किया गया हो तो भी उसे खाली कराना अनिवार्य है। जिला प्रशासन से इस बारे में बात करके रावजी की हवेली को खाली कराएंगे। स्कूल के लिए अलग व्यवस्था होना चाहिए।
-प्रकाश परांजपे, उपसंचालक, पुरातत्व विभाग भोपाल


यह स्थिति गंभीर है। कैसे ये संचालित हो रहा है। भवन के क्या हालात हैं, यह परीक्षण कराऊंगा। छात्राओं और स्टॉफ के जीवन से कोई समझौता नहीं हो सकता।
-उमाशंकर भार्गव, कलेक्टर विदिशा
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