शमशाबाद से करीब 20 किमी दूर स्थित खोरा बंजारा बस्ती का स्कूल ऐसे खंडहरनुमा भवन की दहलान में लगता है, जिसके कभी भी टूट कर गिरने की आशंका है। मुख्य मार्ग से स्कूल करीब डेढ़ किमी अंदर जंगल में है, जहां पहुंचने का कोई मार्ग भी नहीं। पेड़ों की झुरमुटों, खेतों की मेड़ों और जबरन के बनाए रास्तों से होकर यहां पहुुुंचना पड़ता है। ऐसे ही रास्ते से शिक्षक मानसिंह और शिक्षिका नमिता तोमर यहां पैदल पहुंचते हैं। बारिश के दिनों में यहां पहुंचना दूभर होता है।
शिक्षक मानसिंह बताते हैं कि 2007 से यहां पेड़ के नीचे स्कूल लगता था, लेकिन फिर करीब 4 लाख रूपए से स्कूल भवन बनाया गया, काम बेहद घटिया और अधूरा होने के कारण इसे आज तक हेंडओवर नहीं लिया जा सका, यही कारण है कि भवन जगह-जगह से गिरने की हालत में है। कई पिलर, बीम और ईंटे गिर चुकी हैं, सरिए निकल कर खतरनाक दिख रहे हैं। 2015 से ऐसे ही खंडहरनुमा भवन में यह स्कूल चल रहा है।
यहां मात्र चार बच्चे दर्ज हैं, ये सभी चौथी कक्षा के हैं, लेकिन इन चार बच्चों पर ही दो शिक्षकों को पदस्थ रखना शिक्षा विभाग की कार्यशैली का नमूना भी है। मजे की बात यह है कि चार साल स्कूल में पढऩे के बाद भी स्कूल के किसी भी बच्चे को ना तो कोई पाठ पढऩा आता है और ना ही अपना नाम लिखना। चौथी कक्षा के ये बच्चे आज भी अ आ इ ई लिखना सीख रहे हैं।
भवन नहीं, लेकिन शौचालय चकाचक आश्चर्य का विषय है कि इस स्कूल का भवन नहीं है, बच्चे खंडहर सी दहलान में पढ़ते हैं, लेकिन पास ही करीब 1 लाख 20 हजार रुपए का टाइल्स लगा शानदार शौचालय बना दिया गया है। हालांकि यहां इसका उपयोग भी नहीं होता और इसमें कबाड़ा भरा है। लेकिन स्कूल भवन के लिए राशि का रोना रोने वाले विभाग द्वारा यहां सवा लाख से शौचालय बनवाना समझ से परे है।
इनका कहना है खोरा बंजारा का स्कूल भवन बहुत खतरनाक स्थिति में है। यहां चार बच्चे दर्ज हैं, दो शिक्षक पदस्थ हैं, लेकिन पढ़ाने के लिए कोई छोटा सा कमरा भी सुरक्षित नहीं है। दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।
रामभरोसे मोंगिया, सीआरसी वर्धा