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सिंधिया ने माना एसएटीआई में गंभीर वित्तीय संकट

locationविदिशाPublished: Jan 17, 2020 10:01:31 pm

Submitted by:

govind saxena

सिंधिया ने बोर्ड ऑफ गर्वनर्स की बैठक की अध्यक्षता की

सिंधिया ने माना एसएटीआई में गंभीर वित्तीय संकट

सिंधिया ने माना एसएटीआई में गंभीर वित्तीय संकट

विदिशा. एसएटीआई को संचालित करने वाली महाराजा जीवाजीराव एज्यूकेशन सोसायटी के चेयरमेन और पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने शुक्रवार को एसएटीआई में बीओजी की बैठक की अध्यक्षता की और गल्र्स हॉस्टल का लोकार्पण किया।


यहां उन्होंने अपने पिता माधवराव सिंधिया की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर बीओजी की बैठक की अध्यक्षता की। दोपहर करीब 3 बजे पहुंचे सिंधिया ने बोर्ड ऑफ गर्वनर्स की बैठक की अध्यक्षता की और कॉलेज में चल रहे आर्थिक संकट और उससे निपटने के उपायों पर विस्तार से चर्चा की। करीब डेढ़ घंटे तक की बीओजी बैठक के बाद सिंधिया ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि बीओजी की बैठक में वित्तीय स्थिति पर चर्चा हुई है। गंभीर स्थिति चली आ रही है। कैसे आय बढ़ाना है और व्यय कम करने पर चर्चा हुई। हॉस्टल का लोकार्पण, फेकल्टी की विचारधारा पर चर्चा हुई। एसएटीआई सरकार पर निर्भर संस्था है। पिछले 15 साल से ग्रांट नहीं बढ़ी, खर्च बढ़ा है। कई साल से संस्था घाटे में चल रही है। आज ये स्थिति है कि अगर सरकार के फंड को बढ़ाना ही होगा। अगर संस्था को उज्जवल भविष्य देना है तो मदद मिलना चाहिए, इसके लिए मप्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है, मुख्यमंत्री ने इसके लिए उन्होंने आश्वासन दिया है कि जितनी आवश्यकता है उतनी मिलेगी। वित्तीय मदद की जो जरूरत होगी वह दी जाएगी। शिक्षा की संस्था में किसी भी खेल का अखाड़ा नहीं बनना चाहिए। उच्च स्तरीय सुविधाएं बच्चों को मिलें यही कोशिश होना चाहिए। सैलरी तक हम सीमित न रखें, डीए का मुद्दा है, छठवें-सातवें वेतनमान का मुद्दा है। हम सीमित राशि से खर्च चला रहे हैं। जितना खर्च होता है उसका 95 प्रतिशत वेतन और शेष 5 प्रतिशत संस्था चलाने में हो रहा है। स्थिति गंभीर है, और मैं इस शब्द को बहुत सोच समझकर कह रहा हूं। अब यह देखना है कि ऐसे हालात में किस तरीके से संस्था को चला पाएं और इसे उच्च स्तरीय संस्था में तब्दील करना है।

संकट के दौर से गुजर रही एसएटीआई
गौरतलब है कि एसएटीआई जो कभी प्रदेश का जाना माना इंजीनियरिंग संस्थान हुआ करता था, अब भारी संकट से गुजर रहा है। यहां आर्थिक संकट तो है ही, एडमीशन, प्लेसमेंट और फेकल्टी की भी भारी कमी हो चली है। कई फेकल्टी संस्थान छोड़ कर चली गईं हैं, और कई जाने का मन बना रही हैं। जबकि एडमीशन की संख्या लगातार गिरती जा रही है।

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