अपने विहार से पूर्व मुनिश्री प्रमाणसागर महाराज ने कहा कि व्यक्ति क्रोध, लालच, भय तथा मजाक में अक्सर अविवेकपूर्ण व्यवहार करता है। उन्होंने कहा कि मैं तीन दिन का सोचकर यहां आया था, लेकिन विदिशा का पूरे छह दिन मिल गए। फिर कभी ऐसा संयोग मिला तो अवश्य आऊंगा।
अभी आगे बढऩा है। मैं आप लोगों की प्यास बुझाने न हीं बल्कि प्यास को जाग्रत करने आया था। उन्होंने कहा कि वचनों से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता चलता है। जो व्यक्ति वैचारिक रुप से जितना समृद्ध होता है, वह उतना ही समृद्धशाली होता चला जाता है। महान व्यक्तित्व के धनी लोग अपने नौकरचाकर से भी विनम्रता का व्यवहार करते हैं। इसलिए हितकारी बोलें, मधुर बोलें, कभी भी ऐसे शब्द न बोलें जो पापकारी हों। जिसके मुंह में मिठास उसका हर दिल में निवास, जिसके मुंह में खटास कोई न फटके उसके पास। यदि आप दूसरों की मजाक उड़ाओगे तो कल तुम्हारी भी जग हंसाई ही होगी। इसलिए सही सोचें, सही करें और सही बोलें। ऐसे अहितकारी शब्दों का प्रयोग न करें जिससे किसी को भी पीड़ा पहुंचे और स्व तथा पर का नुकसान हो। यह भी ध्यान रखें कि सत्य बोलना ही पर्याप्त नहीं है, सत्य के साथ प्रिय बोलना भी आवश्यक है। दूसरा कभी भी किसी के ऊपर आक्षेप की भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। धर्मसभा के बाद मुनिश्री ने नगर में 15 वें जिनालय का शिलान्यास बंटीनगर चौराहे पर सागर पुलिया के पास किया।