स्लम एरिया के बच्चों में जगाई शिक्षा की अलख
टीचर्स डे पर बात विदिशा के मनोज कौशल की। जो पेशे से तो एक निजी कॉलेज में टीचर हैं लेकिन इनके एक प्रयास ने अब तक करीब 500 बच्चों की जिंदगी बदल दी है। जो बच्चे पहले भीख मांगते थे या फिर कबाड़ और पन्नी बीनते थे वो आज सरकारी स्कूलों में जिंदगी का पाठ सीख रहे हैं। मनोज कौशल का प्रयास लगातार जारी है और वो आज भी शहर के स्लम एरिया में गरीब बच्चों को रोजाना पढ़ाते हैं। मनोज बताते हैं कि शहर की जिन बस्तियों में लोग जाने से कतराते हैं नाक-भौं सिकोड़ते हैं उन बस्तियों के बच्चों का भविष्य अगर उनके थोड़े से प्रयास से संवरता है तो वो जिंदगी भर ऐसे प्रयास को करने के लिए तैयार हैं।
करीब 4 साल पहले शुरु हुई स्लम एरिया ‘क्लास’
स्लम एरिया में शिक्षा का उजियारा फैलाने का ये प्रयास शिक्षक मनोज ने करीब चार साल पहले शुरु किया था। वो बताते हैं कि एक दिन जब उन्होनें शिक्षा से दूर बच्चों को भिक्षावृत्ति करते, पन्नी और कबाड़ा बीनते, बाल मजबूरी करते देखा तो मन इनको शिक्षा देने और इन बच्चों की भविष्य की दिशा बदलने का हुआ। बस फिर क्या था वो हाथ में टाटपट्टी और बोर्ड लेकर झुग्गी बस्तियों में निकल पड़े। बच्चों को आवाज देकर इकहट्ठा किया, उनके माता-पिता को समझाया और स्लम एरिया जतरापुर में पहली क्लास लगाई। धीरे धीरे क्लासेस जतरापुरा की नई और पुरानी बस्ती के साथ ही महलघाट और रायपुरा में भी चल पड़ीं। दिन बीतते गए, हर रोज की क्लास हर रोज का नया अनुभव। कभी सुखद तो कभी मन में खटास पैदा करने वाला, लेकिन मनोज रुके नहीं ।
500 से ज्यादा बच्चे सरकारी स्कूल में ले चुके हैं प्रवेश
करीब चार साल पहले किया गया टीचर मनोज कौशल के प्रयास का परिणाम ये है कि अभी तक 500 से ज्यादा बच्चों को वे सरकारी स्कूल में प्रवेश दिला चुके हैं। इसके अलावा 70 बच्चों को उन्होंने छात्रावास में भी प्रवेश दिलाया है। मनोज बताते हैं कि उन्हें ये पता है कि इन बच्चों के माता-पिता भी इन्हें पढ़ाई के लिए सामग्री उपलब्ध नहीं करा सकते, कुछ जागरुकता की कमी के कारण और कुछ गरीबी के कारण इसलिए मनोज ने पहले अपनी सफल शिक्षा समिति के माध्यम से इनके लिए पढाई की सामग्री जुटाई और फिर नगर के सेवाभावियों द्वारा यहां स्कूल के लिए जरूरी हर सामग्री दी जाने लगी। कई लोग अब अपने जन्मदिन मनाने इन्हीं बस्तियों में इन्हीं बच्चों के पास पहुंचते हैं और वहीं उत्सव मनाकर इन बच्चों को उपहार भी बांटते हैं। बच्चों की क्लास भी ऐसी हो गईं हैं कि किसी भी आगंतुक के आते ही सब खड़े होकर गुड मार्निंग सर कहना नहीं भूलते। अंकों की भाषा, अंग्रेजी और हर विषय को समझाने में मनोज बच्चों के साथ बच्चे बन जाते हैं।