मंदिर सेवा से जुड़े मुखिया मनेंद्र शर्मा और हवेली संगीत से जुड़े मनमोहन शर्मा बताते हैं कि इस दुर्लभ मंदिर में भगवान के बाल स्वरूपों की अष्टमयाम सेवा होती है। यहां राधा जी नहीं, बल्कि बालरूप कृष्ण और बलराम हैं। दिन में आठ बर इन निधियों की सेवा होती है, यही पुष्टिमार्गीय अष्टमयाम की परंपरा है। यूं तो मंदिर में साल भर का हर उत्सव मनता है, लेकिन पुरषोत्तम मास में साल भर के सभी उत्सव एक माह में भी मनाए जाते हैं। इस बीच श्रीजी के सम्मुख हवेली संगीत गूंजता रहता है। धनतेरस से अन्नकूट तक ठाकुर जी को चांदी के विमान में विराजित किया जाता है, जिसे हटरी कहते हैं। जबकि आम दिनों में ठाकुर जी अपने परंपरागत सिंहासन पर विराजते हैं। मंदिर के मुखिया मनेंद्र शर्मा बताते हैं कि मंदिर में ठाकुर जी की पूरी सेवा और उत्सव परिवार के बुजुर्ग वेणी माधव शर्मा के निर्देेशन में होती है। हमारी पांचवीं पीढ़ी मंदिर में ठाकुर जी की सेवा में है। मंदिर में अन्नकूट का आयोजन शुक्रवार को शाम 6 बजे से होगा।