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सड़कों पर करना पड़ता है अंतिम संस्कार, आज तक नहीं बन सके मुक्तिधाम

locationविदिशाPublished: Oct 03, 2019 11:46:57 am

Submitted by:

Anil kumar soni

ग्रामीण खेतों, जंगल और सड़कों पर करते हैं अंतिम संस्कार

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विदिशा। देश को आजाद हुए 74 साल हो गए हैं, लेकिन जिले के आधे से अधिक गांव के विकास की जमीनी हकीकत यह है कि यहां अब तक श्मशानघाट (शांतिधाम) तक नहीं बन सके हैं। जिसके चलते ग्रामीणों को खेतों, जंगलों या फिर सड़कों पर ही अंतिम संस्कार करना पड़ता है।


शांतिधाम बनवाने के निर्देश मिले थे
प्रत्येक गांव में ग्राम पंचायत बनवाने के लिए सरकार ने 2015-16 में केंद्रीय बजट में शांतिधाम निर्माण के लिए राशि का प्रावधान किया था जिलेभर में शांतिधाम बनवाने के निर्देश मिले थे। प्रत्येक शांतिधाम के लिए पंचायतों को 7 से 10 लाख रुपए की राशि व्यय करना थी। लेकिन जमीनी हकीकत यह है

गांव में आज भी श्मशानघाट नहीं
जिले में कुल 577 ग्राम पंचायत हैं। इनमें कुल 1611 गांव हैं और महज 850 गांव में ही अब तक शांतिधाम बन सके हैं और करीब 85 गांव में श्मशानघाट निर्माण का काम प्रगतिशील है। इस प्रकार 750 से अधिक गांव में गांव में आज भी श्मशानघाट नहीं हैं।


सबसे कम कुरवाई तहसील में बने
जिला पंचायत से मिली जानकारी के अनुसार जिले में सबसे कम 61 शांतिधाम कुरवाई तहसील के गांव में बने हैं। जबकि सबसे ज्यादा शांतिधाम सिरोंज तहसील के ग्रामीण क्षेत्रों में 206 बने हैं। गंजबासौदा ग्रामीण क्षेत्रों में 175, लटेरी तहसील में 113, ग्यारसपुर में 112, नटेरन में 98 और विदिशा ब्लॉक के 87 गांव में शांतिधाम अब तक बन सके हैं।

 

यहां सड़क पर ही किया था अंतिम संस्कार
मालूम हो कि नटेरन तहसील के ग्राम पंचायत खाईखेड़ा के ग्राम गुर्जरखेड़ी में एक युवक सितम्बर माह के पहले सप्ताह में नदी में बह गया था और जब उसका शव मिला तो गांव में श्मशानघाट नहीं होने के कारण कांक्रीट सड़क पर ही अंतिम संस्कार करना पड़ा था। क्योंकि उस समय गांव में चारों तरफ पानी भरा था। वैसे गांव में खेत आदि में अंतिम संस्कार करते हैं लेकिन खेतों में पानी भरा जाने के कारण सड़क पर अंतिम संस्कार किया था। यही स्थिति जिले के कई गांव की है।

कहीं दबंगों का कब्जा, तो कहीं भूमि ही उपलब्ध नहीं
गांव में शासकीय भूमि पर दबंगों का कब्जा है, तो श्मशानघाट नहीं बन पा रहे। वहीं कई गांव में श्मशानघाट बनाने के लिए शासकीय भूमि ही उपलब्ध नहीं है और प्रशासन इसके लिए जमीन दानदाताओं से उम्मीद लगाए बैठा है। इस कारण इन गांव में श्मशानन घाट के अभाव में खेतों में, गांव की पगडंडियों में, सड़कों पर शवदाह ग्रामीणों को मजबूरन करना पड़ता है।

 

इनका कहना है
मनरेगा में श्मशानघाट निर्माण को प्राइटी दी गई है। लेकिन कई गांव में शासकीय भूमि का अभाव होने के कारण श्मशानघाट नहीं बन पा रहे हैं। ऐसे में यदि गांव से जमीन दान करने के लिए कोई दानदाता आगे आते हैं, तो वहां श्मशानघाट बन सकते हैं।
– मयंक अग्रवाल, सीईओ जिला पंचायत, विदिशा

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