छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में गौरैया यानी प्रकृति की नन्हें दूत आज विलुप्त होने की कगार पर पंहुची विश्व की सबसे पुरानी पक्षी प्रजाति है।
सुदूर अतीत से पिछले एक-दो दशक तक हमारे घर-आंगन में फुदकने वाली एवं हमारे जीवन संगीत का अहम हिस्सा गौरैया आज विलुप्ति के कगार पर है।
घरों को अपनी चीं-चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती। बढ़ता शहरीकरण और पेड़ों की कटाई उनके घोंसले बनाने की जगहें खत्म कर रहे हैं।
मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन उनकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर रहे हैं।