आजादी के बाद, इंडियन कॉफी बोर्ड ने देश भर में कई कॉफी हाउस का प्रबंधन किया लेकिन 1950 में वित्तीय घाटे के कारण कॉफी बोर्ड ने इन्हें बंद कर दिया था।
आजादी के बाद के सबसे पहला इंडियन कॉफ़ी हाउस जबलपुर में स्थापित हुआ था।
इसका उद्घाटन कम्युनिस्ट नेता और दूरदर्शी ए.के. गोपालन ने किया था।
1950 में सभी कॉफ़ी हाउस बंद होने के बाद ए.के. गोपालन ने श्रमिकों के साथ मिलकर इसे दोबारा शुरू करने का विचार रखा था।
उन्होंने श्रमिकों की सहकारी समितियों के तहत स्वतंत्र रूप से कॉफी हाउस चलाने का प्रस्ताव रखा। इस विचार को लागू करने वाला जबलपुर पहला शहर बना।
1957 में, जबलपुर में भारतीय कॉफी हाउस सहकारी समिति मॉडल के तहत फिर से खुलने वाला पहला शहर बना। इसने "आजाद भारत का पहला भारतीय कॉफी हाउस" बोला गया।
देखते ही देखते यह कॉफ़ी हाउस बुद्धिजीवियों, कवियों, लेखकों और कार्यकर्ताओं का केंद्र बन गया।