सक्ती: महानदी के तट पर बसे चंद्रपुर में पहाड़ी पर विराजमान हैं मां चंद्रहासिनी। मान्यता के अनुसार माता सती का बायां कपोल महानदी के पास स्थित पहाड़ी पर गिरा था। यहां बलि प्रथा का प्रचलन था, लेकिन समय के साथ इसे बंद कर दिया गया।
डोंगरगढ़ : पहाड़ा वाली मां बम्लेश्वरी के दरबार में 3 अक्टूबर से नवरात्र मेले की शुरुआत होगी। श्रद्धालुओं ने यहां ऊपर मंदिर में लगभग 1500 मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए हैं। मंदिर का इतिहास करीब 200 साल पुराना है।
रायपुर : 92 साल पहले आकाशवाणी चौक में काली मंदिर की स्थापना की गई थी। आज इसकी प्रसिद्धि देश-दुनिया में है। देश के विभिन्न राज्यों समेत विदेशी श्रद्धालु भी यहां मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए ज्योत प्रज्ज्वलित करवाते हैं।
छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में स्थित माता खल्लारी का मंदिर. इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि यहां पर महाबली भीम और राक्षसी हिडिंबा का विवाह संपन्न हुआ था. जिसके बाद यहां पर माता खल्लारी का मंदिर बनाया गया.
धमतरी : मंदिर का इतिहास 250 साल पुराना माना जाता है। माता की उत्पत्ति के संबंध में मार्कंडेय पुराण में उल्लेख है। बिलाई माता के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर की काफी मान्यता है। देवी की मूर्ति लगभग 500-600 साल पहले स्वयं ही प्रगट हुई थीं।
झलमला : बालोद जिले के झलमला में माता विराजमान हैं। मंदिर का इतिहास 130 साल से अधिक पुराना है। बताया जाता है कि एक बैगा को मां ने स्वप्न में दर्शन दिए थे, जिसके बाद माता की प्रतिमा को तालाब से निकालकर स्थापित किया।
महासमुंद : जिला मुख्यालय से 25 किमी की दूरी पर माता का मंदिर पहाड़ों पर है। यहां माता के दर्शन के लिए 981 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, वहीं बुजुर्गों के लिए नीचे माता विराजमान हैं। इस जगह का नाम महाभारत में भी वर्णित है।
बागबाहरा: यहां से 4 किमी की दूरी पर घुंचापाली में चंडी माता मंदिर है। पहले यह जगह तंत्र साधना के लिए जानी जाती थी। मंदिर जंगल और पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इस मंदिर में भालू भी आते हैं, जिसे देखने के लिए भी लोग उमड़ते हैं।