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तनाव की अति बन सकती है हिस्टीरिया रोग

Published: Aug 01, 2018 05:20:16 am

आज के दौर में इंसान, मशीन की तरह होता जा रहा है। गलत खानपान के कारण जहां उसे कई शारीरिक रोगों ने जकड़ लिया है, वहीं…

Hysteria disease

Hysteria disease

आज के दौर में इंसान, मशीन की तरह होता जा रहा है। गलत खानपान के कारण जहां उसे कई शारीरिक रोगों ने जकड़ लिया है, वहीं भागदौड़ वाली जीवनशैली की वजह से अपेक्षाओं और उपलब्धियों के बीच दूरी बढऩे से वह मानसिक तनाव के जाल में फंसता जा रहा है। यह तनाव विभिन्न शारीरिक विकारों के रूप में सामने आता है।

 

मानसिक कारणों की वजह से होने वाले शारीरिक विकार के लक्षण हिस्टीरिया रोग की ओर संकेत करते हैं। यह रोग स्त्री और पुरुष दोनों को होता है। लेकिन महिलाएं स्वभाव से अधिक संवेदनशील होती हैं और भावनाओं में बहकर अत्यधिक मानसिक तनाव लेती हैं। इसलिए वे इस रोग की चपेट में ज्यादा आती हैं।

क्यों होता है हिस्टीरिया

लड़कियों की शादी में देरी, पति-पत्नी के बीच लड़ाई-झगड़े, पति की अवहेलना या दुव्र्यवहार, तलाक, मृत्यु, गंभीर आघात, धन हानि, मासिक धर्म विकार, संतान न होना, गर्भाशय के रोग आदि ऐसे कई कारण हंै जो इस बीमारी की वजह बनते हैं।

जब घर में झगड़े हों, प्रेम में असफलता, अपच व कब्ज की शिकायत बनी रहे, रोगी के चेतन या अचेतन मन में चल रहे किसी तनाव का दबाव बहुत बढ़ जाए और उससे बाहर निकलने का जब कोई रास्ता न दिखे तो वह जिन भावों में व्यक्त होता है उसे हिस्टीरिया के नाम से जाना जाता है।


पहचानें इस रोग को

 

शरीर के किसी अंग में ऐंठन, थरथराहट, बोलने की शक्ति का नष्ट होना, निगलने व सांस लेते समय दम घुटना, बहरापन, तेज-तेज चिल्लाना या खूब हंसना जैसे लक्षण सुनिश्चित करते हैं कि स्त्री हिस्टीरिया से ग्रसित है। रोग के लक्षण एकाएक प्रकट या लुप्त हो सकते हैं। लेकिन कभी-कभी लगातार हफ्तों या महीनों तक भी ये बने रह सकते हैं।

मिर्गी जैसे दौरे नहीं पड़ते

अक्सर लोग हिस्टीरिया और मिर्गी के दौरे में अन्तर नहीं समझ पाते। मिर्गी में रोगी को अचानक दौरा पड़ता है। रोगी कहीं पर भी रास्ते में, बस में, घर पर गिर जाता है। उसके दांत भिच जाते हैं, जिससे उसके होंठ और जीभ भी दांतों के बीच में आ जाती है जबकि हिस्टीरिया रोग मे ऐसा नहीं होता। रोगी को हिस्टीरिया का दौरा पडऩे से पहले ही महसूस हो जाता है और वह कोई सुरक्षित स्थान देखकर वहां लेट सकता है।

उसके दांत भिचने पर होंठ और जीभ दांतों के बीच में नहीं आती। दौरा पडऩे पर रोगी के कपड़े ढीले कर देने चाहिए और उसके शरीर को हवा लगने देनी चाहिए। जैसे-जैसे दौरा खत्म होता है, रोगी खुद ही खड़ा हो सकता है।

आयुर्वेद के अनुसार

आयुर्वेद के गं्रथ ‘माधव निदान’ के परिशिष्ट में ‘योषा अपस्मार’ के नाम से इस रोग का वर्णन किया है। इस गं्रथ के अनुसार यह रोग 12-50 वर्ष तक की आयु में होता है।

इन्हें अपनाएं

पुराने घी का प्रयोग और पूरे शरीर पर इसकी मालिश फायदेमंद होती है। पुराने घी की दो बूंदें नाक में रोजाना डालने से भी लाभ मिलता है। दूध स्वभाव से ओज की वृद्धि करता है और ओज के बढऩे से मन की क्षमता में इजाफा होने लगता है।

काश्यप संहिता में लिखा है कि मानसिक रोगों को धृति, वीर्य, स्मृति ज्ञान तथा विज्ञान के द्वारा नष्ट किया जाता है। रसयुक्त और चिकने पदार्थों का सेवन करने वालों में सात्विक गुणों की वृद्धि होती है।

कैसे करें देखभाल

जिन कारणों से यह रोग हुआ है उन्हें दूर करके इस समस्या से निजात पाई जा सकती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, यह रोग भी ठीक होता जाता है। ध्यान रहे कि इस रोग से पीडि़त व्यक्ति पर गुस्सा न करें क्योंकि इच्छाएं पूरी न होने की वजह से वह पहले ही किसी बात से परेशान होता है। इसलिए उसके साथ सौम्य स्वभाव के साथ बातचीत करें। उसकी बातों को ध्यान से सुनें और उसे बार-बार यह एहसास न दिलाएं कि वह किसी समस्या से पीडि़त है।

मरीज को सकारात्मक सोच रखने के लिए प्रेरित करें। उसके अच्छे कामों के लिए उसे प्रोत्साहित करें। रोगी का स्वभाव बदलने के लिए उसे किसी जगह पर घुमाने के लिए भी ले जा सकते हैं। चरक संहिता के अनुसार मानसिक रोगों में सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा बुद्धि, धैर्य व आत्मज्ञान है। हितकर आहार-विहार, दान करने की भावना विकसित करें। क्षमाशीलता और अच्छा आचरण अपनाएं।

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