एक साल की हुई तो पता चला लक्ष्मी को एक साल की उम्र में ही बीमारी ने घेर लिया। उसकी पांव की एक हड्डी चटक गई। उपचार करवाया तो राहत मिली, लेकिन वह तीन साल की हुई और बैठने लगी तो फिर कमर से लेकर दोनों पांव की हड्डियां टूटने लगी। मजदूर पिता अस्पतालों में गया, लेकिन कहीं फायदा नहीं हुआ। दूसरी परेशानी यह कि लक्ष्मी को सरकारी स्कूलों ने दाखिले से मना कर दिया।
खड़ी नहीं हो सकती लक्ष्मी की हड्डियां इतनी कमजोर हैं कि वह पैरों पर खड़ा भी नहीं हो सकती। हल्का सा जोर लगा नहीं कि हड्डी चटख जाती है। लक्ष्मी के लिए चलना फिरना छोड़ पांवों को हिलाना भी मुश्किल हो रहा है। हालांकि हड्डियों के टूटने से उसको दर्द नहीं होता है और न ही किसी प्रकार की सूजन आती है।
नहीं मिल रहा उपचार मजदूर पिता बाड़मेर, जोधपुर, जालौर, गुजरात, जयपुर तक इलाज के लिए जा चुका है। चिकित्सक बस दवाएं देकर भेज देते हैं, लेकिन बीमारी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताते। राज्य सरकार की ओर से विकलांग और बीमारी ग्रस्त बच्चों के उपचार की नि:शुल्क व्यवस्था है, लेकिन न उपचार मिला ना स्कूल में दाखिला।
मेडिकल साइंस में इस बीमारी को ऑस्टियो जेनेटिक इम्परफेक्टा यानी अस्थि भंगुरता कहा जाता है। यह जेनेटिक बीमारी है। इसमें एंजाइम मिसिंग के कारण हड्डियां चटकती है। जांच के बाद ही पता चलेगा बीमारी क्या है?
-डॉ. सुरेन्द्र चौधरी, अस्थि रोग विशेषज्ञ