चित्रन एक शिक्षक है और अपने गांव में हाईस्कूल की स्थापना करने वाले वही हैं। अपने स्कूल में पिछले कई सालों से वह प्रधान शिक्षक के पद पर कार्यरत थे और बाद में उन्होंने सरकार को यह स्कूल सौंप दिया।
साल 1952 में वह पहली बार अपने किसी दोस्त के साथ हिमालय की यात्रा पर गए थे, लेकिन बीच रास्ते में ही उनकी तबीयत खराब हो जाने की वजह से वह लौट आए थे।इसके बाद साल 1990 में वह दोबारा गए और तब से हर साल हिमालय की सैर किए बिना इन्हें चैन नहीं आता।
चित्रन नंबूद्रीपाद कहते हैं कि जब वह मात्र 9 साल के थे तब बड़ों से हिमालय की वादियों की कहानियों को सुनना उन्हें बेहद पसंद था। मन ही मन वह उस जगह के बारे में कल्पना करते रहते थे। शायद तभी से वहां जाने का उन्होंने मन बना लिया था। पहली बार उन्होंने केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा की और तब से यह सफर जारी है।
उनका कहना है कि हिमालय की सैर उन्हें बेहद पसंद है। वह हिमालय के किसी भी प्रान्त की यात्रा कर सकते हैं। हालांकि गंगोत्री में जाना उन्हें ज्यादा अच्छा लगता है। अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए चित्रन नंबूद्रीपाद कहते हैं कि हिमालय की पहाड़ियां विशाल दीवारों की तरह देश की रक्षा करते हुए नजर आते हैं जो कि वाकई में देखने लायक है।
वह कहते हैं कि पहले चट्टानों से गुजर कर घंटों ट्रैकिंग करना बेहद अच्छा लगता था। हालांकि अब उम्र के चलते ऐसा करना संभव नहीं है। इसलिए ऊपर तक जाने के लिए घोड़ा गाड़ी या बस का सहारा लेना पड़ता है।
आप सोच सकते हैं कि उनका आत्मबल कितना ज्यादा है। 100 साल की उम्र में भी वह ट्रेकिंग का अगला प्लान बना रहे हैं जिसे लेकर नौजवान घंटों प्लॉनिंग करते हैं।
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