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एक नौकरी ऐसी भी जहां काम न करने के बदले जिंदगी भर मिलेगा वेतन

locationजयपुरPublished: Nov 12, 2019 03:50:25 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

-स्वीडन की एक कंपनी अपने अनोखे परीक्षण के तहत लोगों को दे रही काम न करने के पैसे
आज जिसे देखो वही काम के बोझ का रोना रोता नजर आता है। सुबह से शाम केवल काम करते-करते आदमी कब बूढ़ा हो जाता है उसे खुद भी पता चलता।

एक नौकरी ऐसी भी जहां काम न करने के बदले जिंदगी भर मिलेगा वेतन

एक नौकरी ऐसी भी जहां काम न करने के बदले जिंदगी भर मिलेगा वेतन

लेकिन कल्पना कीजिए कि आज से आपको कोई काम नहीं करना पड़े, न कोई मीटिंग, न कोई कार्यसीमा, न ही टारगेट पूरा करने का दबाव। बस आराम से कार्यस्थल पर पहुंचकर आप जो मन में आए वह कीजिए। मसलन, फिल्म देख सकते हैं, किताबें पढ़ सकते हैं, कोई शौक पूरा कर सकते हैं यहां तक की सो भी सकते हैं। लेकिन इसके बावजूद आपको हर महीने अच्छा-खासा वेतन, साप्ताहिक अवकाश और तमामसुविधाएं मिलें तो आप क्या करेंगे? आपको दूसरी नौकरी तलाश करने की भी जरुरत नहीं क्योंकि यह स्थायी दिनचर्या होगी और प्रमोशन, इन्सेंटिव्स और रिटायरमेंट के साथ आपको अन्य सुविधाओं का लाभ भी मिलेगा। आपको बस सुबह शाम समय से ऑफिस आना और फिर तय समय पर अपने घर चले जाना है।
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साल 2026 में शुरू होगी यह नौकरी
दरअसल स्वीडन के गोथेनबर्ग शहर में सरकार के खर्चे पर यह अनोखा प्रयोग किया जा रहा है। साल 2026 में शुरू होने वाली इस प्रायोगिक परियोजना में कर्मचारी को शहर के एक निर्माणाधीन रेलवे स्टेशन कोर्सवैगन पर काम करना होगा। उसे करीब 1 लाख 60 हजार (2320 अमरीकी डॉलर) रुपए का मासिक वेतन दिया जाएगा। इसके अलावा कमर्चारी को वार्षिक वेतन वृद्धि, छुट्टियां, सेवानिवृत्ति और पेंशन लाभ भी मिलेगा। लेकिन इस परियोजना में शामिल अन्य लोग वर्ष 2025 तक कोई छुट्टी नहीं लेंगे। जब स्टेशन लोगों के उपयोग के लिए तैयार हो जाएगा तब ऑनलाइन सहायक कर्मचारियों के लिए विज्ञापन का मसौदा भी जारी कर दिया जाएगा।
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क्या रहेगी दिनभर की दिनचर्या
इस काम के लिए योग्यताएं भी बहुत सामान्य हैं। संभावित कर्मचारी को रेलवे स्टेशन पर लगी घड़ी को जैसे ही छुएगा स्टेशन पर लगी लाइट्स जल उठेंगी। रोशनी देखकर दूसरे हिस्से में काम काम कर रहे कर्मचारियों को यह पता लग जाएगा कि उक्त कर्मचारी काम पर आ गया है। दिन ढलने पर वह कर्मचारी वापस घड़ी की ओर लौटेगा और इसके बाद रोशनी बंद हो जाएगी। स्टेशन पर आकर घड़ी को छूने और वापसी के बीच के समय में वह जो करना चाहे उसे पूरी आजादी है। वह दूसरी नौकरी भी कर सकता है। इतना ही नहीं वह दिन भर स्टेशन पर रहने के लिए भी बाध्य नहीं हैं। वह जब चाहे स्टेशन छोड़ कर जा सकता है। वह खुद सेवानिवृत्ती ले सकता है, अपनी जगह किसी और व्यक् ित को नियुक्त करवा सकता है। ऐसा न भी करे तो भी जीवन श्रार के रोजगार की गारंटी तो है ही। इसके लिए किसी विशेष योग्यता की भी आवश्यकता भी नहीं है। इतना ही नहीं इस जॉब के लिए दुनिया के किसी भी देश का नागरिक आवेदन कर सकता है। नौकरी विवरण में इस बात की भी जानकारी दी गई है कि इस काम के लिए किसी तरह की कोई जिम्मेदारी या कत्व्यपरायणता शामिल नहीं है। लेकिन एक अनिवार्य शर्त यह है कि यह नौकरी केवल कोर्सवैगन रेलवे स्टेशन पर ही करनी होगी।
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कैसे हुई इस प्रयोग की शुरुआत
दरअसल यह प्रयोग ‘अनन्त रोजगार’ (इटरनल एम्प्लॉयमेंट) शीर्षक से स्वीडन सरकार की ओर से किया जा रहा एक गंभीर राजनीतिक वक्तव्य और सामाजिक प्रयोग है। साल 2017 की शुरुआत में, सार्वजनिक कला एजेंसी स्वीडन और स्वीडिश यातायात प्रबंधन ने नए स्टेशन के डिजाइन में योगदान करने के इच्छुक कलाकारों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता की घोषणा की थी। प्रतियोगिता के विजेता को 5.17 करोड़ (7.50 लाख डॉलर) की ईनामी राशि मिलेगी।
साइमन गोल्डिन और जैकब सेनेबी नाम के दो स्वीडिश कलाकारों ने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और सुझाव दिया कि स्टेशन को सजाने के लिए यहां भित्ती चित्र और मूर्तियां बनाई जाएं। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि वे अपनी ईनामी राशि से एक हिस्सा एक कार्यकर्ता के वेतन का भुगतान करने के लिए करेंगे लेकिन उसे पूरा दिन कोई काम नहीं करने देंगे।
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120 साल तक जारी रहेगा काम

उनके अनुसार बड़े पैमाने पर मशीनों के बढ़ते प्रयोग और आर्टिफिशियल इंटलिजेंस के इस दौर में इस बात का खतरा है कि हम सभी एक दिन बेरोजगार बनकर रह जाएंगे। तक हमें कोर्सवैगन में मिलने वाले नीरस काम को ही करने के लिए विवश होना पड़ेगा। गोल्डिन और सेनेबी ने यह भी कहा कि वे पुरस्कार राशि को करमुक्त करने के लिए एक फाउंडेशन बनाकर फिर इसे बाजार में निवेश करेंगे। इस तरह वे उस कर्मचारी के वेतन का भुगतान ‘अनंत काल’ तक कर सकेंगे। उनके अंदाजे से यह करीब 120 साल तक जारी रहेगा।
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कारण और भी मजेदार
दरअसल ये दोनों कलाकार अपनी ईनामी राशि को जीवन भर लाभ देने वाली कमाई में बदलना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने स्वीडन के एरिक पेंसर बैंक में पहले ही बात कर ली थी। उन्होंने अपने अनुबंध में बैंक की ओर से दिए गए 2017 के वित्तीय विश्लेषण को भी आवेदन के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया था। दोनों ने एक गैर-लाभकारी संगठनके नाम पर इक्विटी fund बनाकर प्रत्येक महीने उक्त कर्मचारी को 1 लाख 60 हजार रुपए के मासिक वेतन का भुगतान करने का प्रस्ताव दिया था। यह भुगतान सालाना करीब 5.17 करोड़ (7.50 लाख डॉलर) रुपए के बराबर होता है। स्वीडन में सरकारी कर्मचारियों को जो वेतन मिलता है उसमें सालाना 3.2 फीसदी की वृद्धि होती है। बैंक ने यह निष्कर्ष निकाला कि इस बात की 75 प्रतिशत संभावना थी कि मिलने वाली पुरस्कार राशि को इक्विटी फंड में निवेश करने से उन्हें पर्याप्त ब्याज मिलेगा जो कि 120 साल या उससे भी ज्यादा समय तक मिलता रहेगा। इस प्रकार हमारी बनाई कलाकृतियां लगातार हमारी बढ़ती आय की निशानी बन जाएगी।
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राजनीतिक व्यंग्य व सामाजिक प्रयोग भी

दोनों कलाकारों के इस विचार को विनोदी, नवीन और महान गुणवत्ता की कलात्मक अभिव्यक्ति करार देते हुए प्रतियोगिता के निर्णायकों ने उन्हें पुरस्कार देने का फैसला किया। अक्टूबर में अधिकारियों ने घोषणा की कि गोल्डिन और सेनेबी का प्रस्ताव जीत गया है। विजेता घोषित किए जाने के बाद गोल्डिन और सेनेबी ने स्व्यं स्वीकार किया कि किसी को एक दिन में दो बार ट्रेन स्टेशन पर नजर आने के लिए भुगतान करना पूरी तरह से अव्यवहारिक और बेकार काम है। लेकिन ये सोच इस मायने में कमाल की है कि इसके जरिए हम देश की सरकार को जनता की गाढ़ी कमाई का बेजा इस्तेमाल करने के बारे में जागरूक करना चाहते हैं। क्योंकि ये वह लोग हैं जो सोचते हैं कि कोई भी कला बस एक बेकार की चीज है। उनका ये भी मानना है कि शायद इस अनंनत काम से कोई नया मुहावरा भी बन जाए जो लोगों को हमेशा याद दिलाता रहे कि कला का सम्मान करना और सरकारों के हाथ की कठप्तली बनना समझदार नागरिकों का काम नहीं है।
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