अमरीका के इस खुफिया मिशन को प्रोजेक्ट ए-119 नाम दिया गया था। 1959 में ‘ए स्टडी ऑफ लूनर रिसर्च फ्लाइट्स’ रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि चांद की सूर्य के प्रकाश और अंधेरे के मध्य की सतह को परमाणु विस्फोट के लिए चुना गया था। विस्फोट इस प्रकार किया जाना था, ताकि इसे धरती से भी इसे नंगी आंखों से देखा जा सके। इतना ही नहीं विस्फोटकों में सोडियम भरने की योजना भी थी, ताकि यह और चमकीला नजर आए।
जॉन के मुताबिक अमरीकी वायुसेना सोवियत संघ सहित पूरी दुनिया को अपना दमखम दिखाने के लिए चांद को इस्तेमाल करना चाहती थी। भौतिक विज्ञानी लियोनॉर्ड रिफेल से भी इस बारे में वायु सेना ने संपर्क किया था। रिफेल कहते हैं कि यह बम हिरोशिमा में इस्तेमाल परमाणु बम जितना ही बड़ा बनाया जाना था। जॉन लिखते हैं, 1959 में अमरीका की योजना चांद पर सैन्य बेस बनाने की भी थी, जिसका कोड नेम ‘हॉरिजन’ रखा गया था। इस योजना का उद्देश्य 1966 तक 10 से 12 लोगों के लिए चांद पर स्थायी कॉलोनी विकसित करने का था।