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वह दौर जब मज़दूर खुद को उठाने के लिए रखते थे नौकर, इतिहास का दिलचस्प किस्सा

locationनई दिल्लीPublished: May 27, 2019 11:47:11 am

Submitted by:

Priya Singh

ब्रिटेन और आयरलैंड में शुरू हुआ नॉकर-अपर्स का प्रचलन
नॉकर-अपर्स का काम होता था लोगों को उठाना
अलार्म क्लॉक आने के बाद नॉकर-अपर्स की चली गई नौकरियां

before alarm clocks there were knocker uppers

वह दौर जब एक मज़दूर खुद को उठाने के लिए रखता था नौकर, खबर है दिलचस्प

नई दिल्ली। औद्योगिक क्रांति ( industrial revolution ) के बाद वर्किंग क्लास की दिनचर्या में काफी बदलाव आए थे। उस समय मज़दूरी करने वाले वर्ग के कई लगों को सुबह जल्दी उठना पड़ता था। लेकिन 19वीं सदी में अलार्म क्लॉक इतने मशहूर नहीं थे। उस समय के मज़दूरों के लिए अलार्म क्लॉक्स बेहद महंगे भी साबित होते थे। जिस वजह से वर्कर्स नॉकर-अपर्स ( Knocker uppers ) को उन्हें उठाने के काम के लिए पैसे देते थे। नॉकर-अपर्स का प्रचलन ब्रिटेन ( Britain ) और आयरलैंड ( ireland ) में खूब था। नॉकर-अपर्स के काम की बात करें तो सबसे पहले वे दरवाज़ा खटखटाकर लोगों को जगाया करते थे। लेकिन जब कोई वर्कर नहीं उठता था तो वे इतना शोर करते थे कि पूरा मोहल्ला ही उठ जाता था।

knocker uppers

हर सुबह हो रही इस दिक्कत की वजह से पड़ोसी काफी परेशान रहा करते थे। जिसके बाद नॉकर-अपर्स ने वर्कर्स को उठाने के एक दूसरा तरीका निकाला। दो से तीन मज़िला इमारत के लोगों को उठाने के लिए अब वे लंबी लाठियों का सहारा लेने लगे थे। इससे उस घर में रह रहे बाकी लोगों को भी कोई परेशानी नहीं होती थी। और सुबह-सुबह उनकी नींद में कोई खलल भी नहीं पड़ता था। नॉकर-अपर्स तब तक खिड़कियों पर लाठी पीटते रहते जब तक वह उठकर खिड़की पर आ नहीं जाता था।

knocker uppers were waking up workers
दिनभर में एक नॉकर-अपर्स करीब 100 लोगों को उठाने के काम किया करता था। यह काम बेहद की थका देने वाला हुआ करता था। जानकारों की मानें तो नॉकर-अपर्स को सही पैसे भी नहीं मिलते थे। उन्हें कभी-कभी वर्कर्स की नाराज़गी भी झेलनी पड़ती थी। पूरा शहर जब सो रहा होता था तब नॉकर-अपर्स जगकर लोगों को जगाने का काम किया करते थे। लेकिन यह काम बेहद मुश्किल था।
यहां सवाल यह उठता है कि सबसे पहले ये उठते कैसे थे? इसपर एक शख्स ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा था कि ‘हमारे पास नॉकर-अपर्स हैं और नॉकर-अपर्स के पास नॉकर-अपर्स।” लेकिन सच्चाई की बात करें तो नॉकर-अपर्स की ज़िंदगी एकदम उल्लू की तरह हो गई थी। उन्हें रातभर जागने की आदत पड़ गई थी। वे तब सोने थे जब उनका लोगों को उठाने का काम खत्म हो जाता था। इसके बाद 1940 से 1950 के बीच अलार्म क्लॉक का चलन शुरू हुआ। जिसके आने से धीरे-धीरे कर नॉकर-अपर्स की नौकरी चली गई।

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