जगह से पड़ा मुर्गी का नाम
माना जाता है कि सबसे पहले इस मुर्गी को साल 1914 में देखा गया था। इसे स्पेन के पक्षी वैज्ञानिक Salvador Castelló ने देखा था। चूंकि ये मुर्गी चिली के Araucanía इलाके में देखी गई थी, इसलिए इसका नाम Araucana रख दिया गया। वैज्ञानिकों के अनुसार ये घरेलू चिकन की ही एक किस्म है।
माना जाता है कि सबसे पहले इस मुर्गी को साल 1914 में देखा गया था। इसे स्पेन के पक्षी वैज्ञानिक Salvador Castelló ने देखा था। चूंकि ये मुर्गी चिली के Araucanía इलाके में देखी गई थी, इसलिए इसका नाम Araucana रख दिया गया। वैज्ञानिकों के अनुसार ये घरेलू चिकन की ही एक किस्म है।
रेट्रोवायरस की वजह से अंडों का बदल जाता है रंग
वैज्ञानिकों के अनुसार रेट्रोवायरस के हमले की वजह से अंडों का रंग नीला होता है। ये वे वायरस हैं जो सिंगल RNA होते हैं। ये मुर्गियों में प्रवेश कर उनके जीनोम की संरचना को बदल देते हैं। इन रेट्रोवायरस को EAV-HP कहते हैं। जींस की संरचना में बदलाव के कारण चिकन के अंडों का रंग बदल जाता है। हालांकि वायरस के बावजूद ये खाने में बिल्कुल सुरक्षित होते हैं। क्योंकि ये महज अंडों की बाहरी संरचना को प्रभावित करते हैं। यूरोपियन देशों और अमेरिका में ये चिकन और इसके अंडे काफी चाव से खाए जाते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार रेट्रोवायरस के हमले की वजह से अंडों का रंग नीला होता है। ये वे वायरस हैं जो सिंगल RNA होते हैं। ये मुर्गियों में प्रवेश कर उनके जीनोम की संरचना को बदल देते हैं। इन रेट्रोवायरस को EAV-HP कहते हैं। जींस की संरचना में बदलाव के कारण चिकन के अंडों का रंग बदल जाता है। हालांकि वायरस के बावजूद ये खाने में बिल्कुल सुरक्षित होते हैं। क्योंकि ये महज अंडों की बाहरी संरचना को प्रभावित करते हैं। यूरोपियन देशों और अमेरिका में ये चिकन और इसके अंडे काफी चाव से खाए जाते हैं।