कैप्सूल के अंदर दवाई होती है और बाहरी हिस्सा जिसे हम अब तक प्लास्टिक समझते आ रहे हैं वह आखिर में प्लास्टिक का है ही नहीं। इसकी सच्चाई कुछ और ही है जिसे अगर आप जान लेंगे तो शायद आप इसे खाने से पहले दस बार सोचेंगे।
कैप्सूल के बाहरी हिस्से का निर्माण जिलेटिन से किया जाता है। जिलेटिन को कोलेजन से बनाया जाता है। कोलेजन एक रेशेदार पदार्थ होता है जिसे जानवरों की हड्डियों या स्किन को उबालकर निकाला जाता है और बाद में इसे प्रॉसेस कर चमकदार और लचीला बनाया जाता है।
दरअसल, जिलेटिन बनाने के लिए सबसे पहले इन हड्डियों व चमड़े को एक बड़े प्लांट में उबाला जाता है। इसके बाद उनमें से रेशेदार कोलेजन निकलता है। अंत में प्रोसेस कर इसे एक नया रूप दिया जाता है।
इस बात का विरोध केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने भी किया था। उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय को एक खत लिखकर इस बात की मांग की कि कैप्सूल की बाहरी सतह को बनाने के लिए जिलेटिन की जगह सेल्यूलोज का उपयोग किया जाना चाहिए। यह पौधों की छाल या उनसे निकलने वाले रस को कहा जाता है।
मेनका गांधी का यह भी कहना था कि इससे लोगों की धार्मिक भावनाएं भी आहत नहीं होंगी। इसके बाद जैन धर्म के कुछ लोगों ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी. नड्डा से मुलाकात की थी। इस दौरान उनका भी यह कहना था कि इस तरह से बने कैप्सूल पर रोक लगाई जानी चाहिए।