अगर हम प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता की बात करें तो वे शव की ‘ममी’ बनाकर उसे एक संदूक में बंद कर दफना देते थे। ऐसा वे इसलिए करते थे क्योंकि उनका ऐसा मानना था कि शरीर त्यागने के बाद आत्मा इधर-उधर भटकती रहती है। ऐसे में वे उसके रहने के लिए एक निश्चित स्थान का बंदोबस्त करते थे। प्राचीन मिस्त्र में शव के साथ-साथ कुछ जरुरत की चीजों को भी उसके साथ दफना देने की प्रथा का चलन था। इनमें उनकी मनपसंद चीजें, जरूरी वस्तुएं और तो और उनके नौकरों को भी दफना दिया जाता था क्योंकि ऐसी मान्यता थी कि जब आत्मा किसी दूसरे शरीर में पुनर्जन्म लेगी तब वह इन सारी वस्तुओं का इस्तेमाल कर सकेगी।
मिस्त्र के बाद यूनानी एवं रोमन सभ्यताओं का दौर आया। वे शरीर को दफनाने की जगह उसे जलाने की प्रथा का पालन करने लगे। हालांकि बाद में इस्लाम ने शव को जलाने की प्रथा का बहिष्कार किया।
शरीर को दफन करने के पीछे कई कारण बताए गए हैं। सबसे पहले इसे विदाई देने का सबसे साफ एवं सुरक्षित तरीका बताया गया है क्योंकि मरने के बाद बॉडी को दफनाने से वह धीरे-धीरे मिट्टी में मिलकर प्राकृतिक रूप से खत्म हो जाता है। इससे वातावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। किसी प्रकार का कोई प्रदूषण भी नहीं फैलता है।
हिंदुओं में शव को जलाने की प्रथा है क्योंकि हिंदुओं में अग्नि को देवता माना जाता है। इसीलिए पूजा,यज्ञ, हवन, शादी इत्यादि सभी पवित्र कार्यों में अग्नि को बेहद महत्व दिया जाता है।
हिन्दू धर्म में शव को जलाते समय अग्नि देव से इस बात की प्रार्थना की जाती है कि, अग्नि देव शरीर के पांच अहम तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश को अपने में ग्रहण कर लें और उन्हें एक नया जीवन प्रदान करें।
हिंदुओं के साथ-साथ सिख और जैन धर्म में भी मृत्यु के बाद 24 घंटे के अंदर शव को जला दिया जाता है।