आमंत्रण के साथ भोजन करने पहुंचे कुत्तों को आयोजक ने पत्तल डलवाई और उस पर शुद्ध घी की पूड़ी, खीर और बूंदी परोसी। यह अनूठा आयोजन बुधवार को जिला मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर दूर दतिया ब्लॉक के केवलारी में हुआ।
कुत्ते के भोज के आयोजन की कहानी भी अनूठी है। केवलारी में भागवत कथा का आयोजन किया गया था। भागवत कथा के समापन पर कुछ दिन पहले भंडारे का आयोजन हुआ। भंडारे के दौरान गांव के रामजी अहिरवार ने कुत्तों को जूठी पत्तलें चाटते और लोगों को कुत्तों को दुत्कारते देखा। रामजी को यह अच्छा नहीं लगा। दो-तीन पहले यह दृश्य में उन्हें स्वप्न में फिर दिखा तो उन्होंने कुत्तों को भोज देने की ठान ली।
रामजी ने इस बारे में अन्य ग्रामीणों को इस बारे में बताया तो उन्होंने भी आयोजन करने पर सहमति देते हुए प्रसन्नता जाहिर की। रामजी ने गांव में जिन लोगों के यहां कुत्ते पले हैं उनके घर जाकर निमंत्रण दिया। शाम के समय दलित बस्ती में लोग अपने-अपने कुत्तों को भोजन कराने के लिए रामजी के यहां पहुंचे। रामजी ने वहां खुद व अन्य ग्रामीणों के सहयोग से पत्तल डाल कर कुत्तों को भोजन कराया। इस दौरान करीब डेढ़ सौ कुत्तों को भोजन कराया।
बस्ती में कुत्तों को भोजन कराने के अलावा रामजी ने आसपास के खेतों, खलिहानों व सडक़ पर घूमने वाले कुत्तों को भोजन कराया। रामजी के इस काम में अनमोल रावत और मोनू अहिरवार सहित अन्य ग्रामीणों ने भी सहयोग किया।
रामजी का कहना है कि कुत्ते जूठे पत्तल चाटते हैं और लोग उन्हें दुत्कारते हैं। इसलिए हमने सोचा कि एक दिन कुत्तों के लिए भोज का आयोजन किया जाए। रामजी का कहना है कि वह जिंदा रहा तो हर साल कुत्तों के लिए भोज का आयोजन करेगा और आने वाले साल में पांच गांव के कुत्तों को भोजन कराएगा।
शास्त्रों में भी है विधान पंडित शैलेंद्र मुडिय़ा के अनुसार कुत्तों को खाना देने का विधान शास्त्रों में भी है। पहली रोटी गाय और आखिरी रोटी कुत्ते को दी जाती है। कुत्तों को नियमित रूप से भोजन देने से शत्रुओं का भय समाप्त होता है। कुत्ते को शास्त्रों में भगवान भैरव का वाहन माना गया है।