महमूद बेगड़ा गुजरात के छठें सुल्तान थे। महज तेरह वर्ष की उम्र में वे गद्दी पर बैठे और 52 वर्ष की आयु तक उन्होंने सफलतापूर्वक राज किया। यानि कि 1459-1511 ईसवी तक उनका शासनकाल रहा। महमूद बेगड़ा अपने वंश के सबसे प्रतापी और वीर शासकों में से एक थे।
‘गिरनार’ जूनागढ़ तथा चम्पानेर के किलों को जीतने के बाद उन्हें ‘बेगड़ा’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। एक पराक्रमी योद्धा के रुप में वे अपने शासनकाल में मशहूर थे और इसके साथ ही साथ अपने खान-पान के लिए वे चर्चित थे।
उनका व्यक्तित्व काफी आर्कषक था। वे हट्टे-कट्टे थे। उनकी मूंछे भी काफी लम्बी थी जिन्हें वे सर के पीछे बांधकर रखते थे। वे एक बार में इतना ज्यादा खाना खाते थे जिसे देखकर लोग हैरान रह जाते थे और ऐसा वे हर रोज करते थे।
सुबह के नाश्ते में बादशाह एक कटोरा शहद, एक कटोरा मक्खन और सौ से डेढ़ सौ तक केले आराम से खा जाते थे। जी हां, कुछ ऐसा ही था उनका ब्रेकफास्ट।
फारसी और यूरोपीय इतिहासकारों ने अपनी कुछ कहानियों में इस बात का उल्लेख भी किया है कि वे हर रोज लगभग एक गुजराती टीले जितना खाना खा जाते थे। दोपहर के भरपेट आहार के बाद बादशाह को मीठा खाने का शौक था। हर रोज डिर्सट में बादशाह 4.6 किलो मिट्ठे चावल खा जाते थे।
दिनभर इतना खाने के बाद और रात में भरपेट डिनर के बाद भी बादशाह का मन नहीं भरता था। रात को अचानक भूख लग जाने के डर से सुल्तान को परेशानी का सामना ना करना पड़े इस वजह से उनके तकिए के दोनो तरफ गोश्त के समोसों से तश्तरियाँ रखी जाती थी ।जिससे सुल्तान रात की भूख को शांत कर सकते थे।
वाकई में तरह-तरह के व्यंजनों को बेपरवाह ढंग से खाने वालों की संख्या पहले भी थी, आज भी हैं और आगे भी ऐसे लोग रहेंगे, लेकिन जो बात बादशाह महमूद बेगड़ा में थी वह वाकई में तारीफे काबिल है।