दोनों देश जता रहे थे अपना हक
खास बात यह कि, इस खास बग्घी को दोनों ही देश अपने पास रखना चाहते थे। ऐसे में तत्कालीन ‘गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स’ के कमांडेंट और उनके डिप्टी ने इस विवाद को सुलझाने के लिए एक सिक्के का सहारा लिया। गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स ने दोनों पक्षों को आमने-सामने लाकर उनके बीच सिक्का उछाला, जिसमें भारत ने टॉस जीत लिया और इसी के साथ राष्ट्रपति की शान माने जाने वाली बग्घी भारत की हो गई।
इंदिरा गांधी की मौत के बाद दिखना बंद हो गई थी ये बग्घी
15 अगस्त को मिली आजादी के बाद संविधान निर्माण का कार्य शुरू हुआ और 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू हो गया। पहली बार इस बग्घी का इस्तेमाल भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र डॉ. प्रसाद ने गणतंत्र दिवस के मौके पर किया था। उसके बाद से निरंतर इस बग्घी का इस्तेमाल भारत के निर्वाचित होने वाले राष्ट्रपति किया करते थे, लेकिन भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 1984 में मौत के बाद सुरक्षा कारणों का हवाला देकर इसे बंद कर दिया गया और इसके बाद से राष्ट्रपति बुलेट प्रूफ गाड़ी में आने लगे।
13वें राष्ट्रपति ने बदली परंपरा
भारत के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 30 सालों से बंद इस प्रथा को फिर से शुरू किया और इस बग्घी में बैठकर 29 जनवरी को होने वाली बीटिंग रिट्रीट में शामिल होने पहुंचे। इसके बाद से अब निरंतर इस प्रकिया को निर्वाह किया जा रहा है। यहां तक प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल खत्म होने के बाद निर्वाचित हुए भारत के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी इस बग्घी का इस्तेमाल करते हैं।