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अजब गजब

आस्था और नफरत की अनोखी मिसाल है यह जगह, चप्पल मारकर गाली देने से पूरी होती है मनोकामना

हरियाणा के पानीपत में एक जगह है कपालमोचन जहां आस्था और नफरत दोनों देखने को मिलती है। यहां पर एक तरफ श्रद्धालु गुरुद्वारे में शीष झुकाते हैं तो वहीं इससे ठीक 10 कदम की दूरी पर राजा जरासंध के टीले पर न केवल जूते, चप्पल मारते हैं बल्कि गंदी-गंदी गालियां भी देते हैं।

नई दिल्लीNov 26, 2018 / 06:03 pm

Neeraj Tiwari

आस्था

आस्था और नफरत की अनोखी मिसाल है यह जगह, चप्पल मारकर गाली देने से पूरी होती है मनोकामना

नई दिल्ली। दुनिया में हर इंसान की कोई न कोई इच्छा जरूर होती है। फिर चाहे वो कुछ अच्छा करने की हो या फिर कुछ गलत करने की। भारत में एक ऐसी ही जगह है जहां ये दोनों काम एक साथ किए जा सकते हैं। जी हां, हरियाणा के पानीपत में एक जगह है कपालमोचन जहां आस्था और नफरत दोनों देखने को मिलती है। यहां पर एक तरफ श्रद्धालु गुरुद्वारे में शीष झुकाते हैं तो वहीं इससे ठीक 10 कदम की दूरी पर राजा जरासंध के टीले पर न केवल जूते, चप्पल मारते हैं बल्कि गंदी-गंदी गालियां भी देते हैं।
ऐसे में यह बताना जरूरी है कि यहां पर पहुंचना थोड़ा कठिन है क्योंकि यहां पर जाने के लिए आपको पांच किलोमीटर की दूरी तक करनी होती है इसके लिए या तो आटो का सहारा लेना होगा या फिर पैदल ही जाना होगा। क्योंकि यहां का रास्ता बेहद ही दुर्गम है। वैसे तो मेले के दौरान यहां पर लोगों की आवाजाही रहती है, लेकिन मेला खत्म होते ही यह जगह वीरान होने लगती है। इस जगह की खास बात यह है कि गुरु गोबिंद सिंह भंगियानी का युद्ध जीतने के बाद कपालमोचन आए थे और यहां पर अपने अस्त्र-शस्त्र धोए थे। इस जगह को सिंधू वन के नाम से भी जाना जाता है।
चप्पल मार कर गाली देने की है प्रथा
गुरुद्वारे के दाई तरफ करीब 10 कदम की दूरी पर ही मिट्टी का बहुत ऊंचा टीला बना है। कहा जाता है कि यह कभी राजा जरासंध का महल हुआ करता था, लेकिन एक सती द्वारा दिए गए श्राप के कारण उसका यह किला मिट्टी में तब्दील हो गया था। दरअसल, यहां का राजा जरासंध अपने राज्य में होने वाली शादियों की डोली लूटकर अपने इसी महल में लाता था और नई नवेली दुल्हनों की इज्जत से खेलता था। इससे राज्य की जनता बड़ी परेशान थी, लेकिन कुछ कर पाने में असमर्थ थी। ऐसे में सती ने अपने तप से इस महल को भस्म कर दिया। इसके बाद से ही यहां पर जूते-चप्पल मार कर गाली देने की प्रथा शुरू हुई। मान्यता है कि ऐसा करने से हर मनोकामना पूरी होती है।

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