इस तकनीक का इस्तेमाल समंदर में तेल को फैलने से रोकने के लिए किया जाता है। मार्च 2019 में जब फ्रांस के तट से करीब 300 किलोमीटर दूर ग्रांदे अमेरिका जहाज डूबा तो यही तकनीक इस्तेमाल की गई। इस तकनीक में पानी में तैरने वाले बैरियर इस्तेमाल किए जाते हैं। इन बैरियरों को बूम कहा जाता है। ये तेल को फैलने से रोकते हैं। बूम के जरिए तेल को एक निर्धारित दायरे में रोका जाता है और फिर स्किमर मशीनों के जरिए पानी से अलग कर नावों में भरा जाता है। प्रोसेसिंग के बाद इस तेल को फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। यह तरीका भले ही आसान लगता हो लेकिन ये तभी काम करता है जब तेल एक ही इलाके में फैला हो। इस प्रक्रिया में पैसा और काफी संसाधन लगते हैं।
कुछ खास परिस्थितियों में तेल को पानी में जलाना सबसे कारगर तरीका है। आर्कटिक या बर्फ से ढके पानी में तो सिर्फ यही तकनीक काम करती है। अप्रैल 2010 में मेक्सिको की खाड़ी में हुए ऑयल प्लेटफॉर्म हादसे के दौरान यही तरीका इस्तेमाल किया गया। इंसानी इतिहास के उस सबसे बड़े तेल रिसाव को रोकने का और कोई तरीका नहीं था। तेल कंपनी बीपी के ऑयल प्लेटफॉर्म से बहुत ज्यादा कच्चा तेल समंदर की गहराई में लीक हो रहा था। अगर नियंत्रित ढंग से आग नहीं लगाई जाती तो समुद्री इकोसिस्टम को बहुत ही ज्यादा नुकसान होता, लेकिन इस तकनीक की सबसे बड़ी कमजोरी वायु प्रदूषण है। कच्चे तेल के धधकने से बहुत ज्यादा जहरीली गैसें निकलती हैं।
स्पंज या रूई जैसी चीजों की मदद से तेल को सोखना, ये पर्यावरण के लिहाज से सबसे अच्छा तरीका है। जमीन पर तेल रिसाव को काबू में करने में यह काफी असरदार है, लेकिन तेल की मात्रा कम हो तो ही यह तरीका कारगर साबित होता है। समंदर में फैले तेल पर यह बहुत फायदेमंद नहीं होता। अगर सोखने वाली चीजें पानी में घुल गई या बह गई तो नुकसान ज्यादा होता है। इसमें जोखिम यह होता है कि तेल से सना ये मलबा समंदर में खो सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक कई सोखक भरोसेमंद भी नहीं होते।
अगर तेल रिसाव की जगह महासागर में बहुत दूर हो और वहां तक संसाधन पहुंचाने मुश्किल हों तो सब कुछ प्रकृति पर छोड़ दिया जाता है। हवाएं और लहरें देर सबेर तेल को दूर दूर पहुंचा देती हैं। काफी तेल वाष्पीकृत हो जाता है। समय के साथ माइक्रोब्स भी तेल को जैविक रूप से विघटित कर देते हैं, लेकिन यह बहुत ही धीमी प्रक्रिया है। इस पर बारीक नजर रखने की जरूरत पड़ती है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस प्रक्रिया का ये मतलब नहीं है कि इंसान कुछ न करें। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कोई भी तरीका चमत्कार नहीं कर सकता है।