scriptइस शिव मंदिर में भटकती आत्माओं को मिलती है मुक्ति, मुंह में गंगाजल डालते ही होता है चमत्कार | Lakhamandal temple is a mysterious shiv dham, spirits get salvation | Patrika News

इस शिव मंदिर में भटकती आत्माओं को मिलती है मुक्ति, मुंह में गंगाजल डालते ही होता है चमत्कार

Published: Dec 10, 2020 03:50:59 pm

Submitted by:

Soma Roy

Lakhamandal temple : देहरादून से करीब 128 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भगवान शिव का ये अनोखा मंदिर
कहते हैं इस मंदिर में मुर्दे को लाने और उन्हें भगवान के सामने रखने पर उन्हें मोक्ष मिलता है

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Lakhamandal temple

नई दिल्ली। देश भर में भगवान शिव के कई ऐसे चमत्कारिक मंदिर हैं जिनकी महिमा निराली है। कुछ जगह तो इतने सिद्ध है कि यहां भटकती आत्माओं तक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान भोलेनाथ का ऐसा ही एक चमत्कारिक धाम खूबसूरत पहाड़ी क्षेत्र उत्तराखंड में स्थित है। जिसका नाम लाखामंडल मंदिर है। मान्यता है कि यहां मृतक भी जिंदा हो जाता है। साथ ही मुंह में गंगाजल डालते ही उसे सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिलती है।
देहरादून से करीब 128 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर की महिमा को सुनकर लोग अचरज में पड़ जाते हैं। इस मंदिर में लोग मुर्दे को लेकर आते हैं कहते हैं अगर उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती है तो यहां उन्हें मोक्ष मिलता है। पुजारी मंत्रों के साथ उनके मुंह में गंगाजल डालते हैं। ऐसा करते ही मृतक जिंदा हो जाता है। बाद में आत्मा दोबारा शरीर को छोड़कर चली जाती है। इससे मरने वाले शख्स को मोक्ष मिल जाता है। उसकी आत्मा अतृप्त होकर भटकती नहीं है।
बताया जाता है कि ये मंदिर छठी शताब्दी का है। यहां प्राप्त हुई मूर्तियां बेहद चमत्कारिक हैं। मंदिर के गेट पर दो द्वारपालों की मूर्ति है। जिनमें से एक का हाथ कटा है। मगर इसका क्या रहस्य है ये आज तक कोई नहीं जान पाया है। शिव के इस अनोखे मंदिर में खुदाई के दौरान अनेक शिवलिंग पाए गए थे,शिव का यह धाम कई गुफाओं और प्राचीन अवशेषों से घिरा हुआ है। यह मंदिर यमुना नदी की तट पर बर्नीगाड़ नामक जगह से कुछ दूरी पर स्थित है।
कहा जाता है कि इसी जगह दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह अर्थात लाख का मंदिर बनाया था। इसके बाद पांडव देव कृपा से एक गुफा से होते हुए इस गुफा से बाहर निकले थे। यहां से करीब दो किमी दूर लाखामंडल के निचले हिस्से में एक शिव मंदिर भी था। तभी भगवान शिव और पार्वती जी का धन्यवाद करने के लिए युधिष्ठिर ने यहां मंदिर बनवाया था।
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