इस तालाब के बारे में कहा जाता है कि यह दुर्योधन का तालाब है। यहां पर महाभारत के युद्ध के बाद दुर्योधन ने अपनी जान बचाने के लिए जल समाधि ली थी। इस कारण से आज भी लोगों द्वारा इस तालाब पर दुर्योधन की पत्नियों की पूजा की जाती है। लोगों का कहना है कि युद्ध के पश्चात दुर्योधन कौरवों में अकेला ही बचा था और वो अपनी जान बचाने के लिए इसी गांव के तालाब में छिप गया था और तालाब में खिले कमल के फूलों के जरिए सांस लेता था, लेकिन वह ज्यादा दिनों तक पांडवो और श्रीकृष्ण से बच ना सका।
पांडवों ने इस तालाब को चारो ओर से घेर लिया और दुर्योधन को तालाब से बाहर निकलने के लिए मजबूर किया। तालाब ने निकलने पर भीम ने दुर्योधन पर गदा से प्रहार करना शुरू कर दिया, लेकिन माता गांधारी के आशीर्वाद से दुर्योधन का शरीर वज्र का हो चुका था सिवाए जांघ के। ऐसे में भीम ने दुर्योधन की जांघ पर प्रहार करना शुरू किया और उसका अंत कर दिया। बाद में इसी स्थान पर दुर्योधन का अंतिम संस्कार किया गया। ऐसे में उसकी 13 पत्नियां सती हो गईं। इसके बाद से ही इस स्थान को गांव के लोगों द्वारा पूजा जाता है।