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उत्तराखंड की ऐसी झील, जहां मछलियां नहीं तैरते हैं कंकाल और हड्डियां, पीछे की सच्चाई जान जम जाएगा खून

वर्ष 1942 में भारतीय वन विभाग के एक अधिकारी ने यहां कंकालों को खोज निकाला था। कुछ लोगों को मानना था कि, यह नर कंकाल उन जापानी सैनिकों के थे जो द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौरान इस रास्‍ते से गुजर रहे थे।

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उत्तराखंड की ऐसी झील, जहां मछलियां नहीं तैरते हैं कंकाल और हड्डियां, पीछे की सच्चाई जाम जम जाएगा खून

नई दिल्ली। पूरी दुनिया आशचर्य से भरी पड़ी है। ऐसे कई रहस्य हैं जो आए दिन हमारे सामने आते हैं। कुछ रहस्य ऐसे होते हैं जिनका जवाब विज्ञान के पास भी नहीं होता। वहीं भारत में जहां एक तरफ सांस्कृतिक विविधताएं हैं तो वहीँ कई रूढ़ियां, अंधविश्वास , जादू टोना, भूत प्रेत और रहस्य भी हैं। ऐसे में यहां आपको रहस्य से भरी बहुत सी कहानियां सुनने को मिल जाएंगी जो अपने आप में दिलचस्प होती हैं। भारत में उत्तराखंड की पहाड़ियों के बीच छिपी रूपकुंड झील है। इसे कंकालों की झील के नाम से भी जाना जाता है। अब आपके मन में आ रहा होगा कि इसे कंकालों की झील क्यों कहते हैं?

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आपको जानकारी के लिए बता दें कि, वर्ष 1942 में भारतीय वन विभाग के एक अधिकारी ने यहां कंकालों को खोज निकाला था। कुछ लोगों को मानना था कि, यह नर कंकाल उन जापानी सैनिकों के थे जो द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौरान इस रास्‍ते से गुजर रहे थे। वहीं कुछ लोगों का मानना था कि, यह खोपड़िया कश्‍मीर के जनरल जोरावर सिंह और उसके आदमियों की हैं, जो 1841 में तिब्‍बत के युद्ध से लौट रहे थे और खराब मौसम की जद में आ गए।

लेकिन असलियत में, शोध के बाद सामने आया कि वो नर कंकाल 12 से 13वीं सदी के हैं, जो यहां हुए हुई भारी बर्फ़ बारी के कारण मारे गए थे. इस शोध के बाद वैज्ञानिकों ने इस जगह में ख़ासी दिलचस्पी दिखाई थी। जमी झील के पास मिले लगभग 200 कंकाल नौवीं सदी के उन भारतीय आदिवासियों के हैं जो ओले की आंधी में मारे गए थे। शोधकर्ताओं का कहना है कि उन लोगों की मौत किसी हथियार की चोट से नहीं बल्कि उनके सिर के पीछे आए घातक तूफान की वजह से हुई है। खोपड़ियों के फ्रैक्चर के अध्ययन के बाद पता चला है कि मरने वाले लोगों के ऊपर क्रिकेट की गेंद जैसे बड़े ओले गिरे थे जो इनके एक साथ मरने का कारण था।