मरने के बाद लोग उस शख्स के बारे में तरह-तरह की बातें करते हैं। उसकी परिस्थिति को समझने के बजाय हम उसे कोसते रहते हैं। हालांकि यह बात तो सच है कि मरना किसी समस्या का समाधान नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि कोई अपनी इच्छा या शौक से मरना नहीं चाहता। इंसान के हालात उसे इस चीज के लिए मजबूर करती है।
अब अगर आप डिप्रेशन में हैं या दिमाग में तरह-तरह के नेगेटिव ख्याल आ रहे हैं तो तुरंत किसी साइकियाट्रिस्ट से कंसल्ट करें क्योंकि यह एक केमिकल लोचा है जिसके ऊपर इंसान का कोई वश नहीं है। जी हां, दिमाग में जब सेरोटोनिन का लेवल कम हो जाता है तो इंसान के मन में आत्महत्या का ख्याल आता है।
डिप्रेशन, नेगेटिविटी, सूसाइडल थाट्स जब भी दिमाग में आने लगे तो समझ जाए कि ब्रेन में सेरोटोनिन की कमी हो गई है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि हमारे दिमाग में करोड़ों सेल्स होते हैं और इनमें कई तरह के केमिकल्स होते हैं।
सेरोटोनिन भी एक तरह का केमिकल होता है जो दिमाग को शांत और खुश रखता है। सेरोटोनिन की कमी से व्यक्ति अवसाद से घिर जाता है और नतीजा सूसाइड तक पहुंच सकता है।
हमेशा बुलंद हौसलें काम नहीं आते हैं क्योंकि कई बार हमारा खुद पर कोई कंट्रोल नहीं रहता है। इसीलिए अगर ज्यादा दिन तक आपको कुछ ऐसा महसूस हो तो तुरंत इसका इलाज करवाना चाहिए।
रोगी का साथ दें और मनोवैज्ञानिक के पास उसे लेकर जाए क्योंकि इसका इलाज संभव है और सही इलाज से व्यक्ति पूरी तरह से ठीक हो सकता है और जिंदगी को खुलकर जी सकता है।