जैसा कि हम जानते हैं कि आज हम जो भी करते हैं या जिस भी त्यौहार को मनाते हैं उसके पीछे कोई न कोई कहानी या वजह अवश्य होती है। बाकी त्यौहारों की तरह ईद-उल-अजहा को मनाने के पीछे की भी एक कहानी है जो कुछ इस प्रकार है।
ऐसा कहा जाता है कि इब्राहीम अलैय सलाम नाम का एक आदमी था। इब्राहीम की कोई संतान नहीं थी। इब्राहीम ने काफी दुआएं मांगी। अन्त में खुदा की मेहरबानी से उनके घर में एक लड़के का जन्म हुआ। इब्राहीम ने अपने बेटे का नाम इस्माइल रखा। इस बीच एक दिन इब्राहिम ने सपने में देखा कि अल्लाह उनसे कह रहे हैं कि, इस दुनिया में तुम्हें जो भी चीज सबसे प्यारी है उसकी कुर्बानी दे दो।
अल्लाह के हुक्म को मानने से इब्राहिम ने इंकार नहीं किया। उनके लिए दुनिया में सबसे उनका बेटा था। अपने बेटे की कुर्बानी देने में उन्होंने कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं की।
इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए जैसे ही छुरी चलाई वैसे ही एक फरिश्ते ने उनके बेटे को हटाकर वहां एक मेमना रख दिया।
इस प्रकार कुर्बानी इस्माइल की नहीं बल्कि मेमने की हुई। इस घटना के बाद से ही उस दिन को ईद-उल-अजहा नाम से पुकारा जाने लगा। इस दिन लोग बकरे की कुर्बानी देकर इस परंपरा का पालन करते हैं।
पूरी दुनिया में लोग इस दिन हर्षोल्लास के साथ इस त्यौहार को मनाते हैं।घरों में तरह-तरह के पकवान बनते हैं। लोग एक-दूसरे को बधाईयां देते हैं। चारों ओर खुशी का माहौल रहता है।