भारत के महान व्यक्तित्वों के बारे में जब भी बात होती है तो स्वामी विवेकानंद का नाम स्वयं ही आ जाता है। भारतीय आध्यात्मिकता, धर्म और दर्शन का पूरी दुनिया में प्रचार-प्रसार करने में उनका योगदान अहम है। अब अगर बात स्वामी विवेकानंद की हो रही हो और ऐसे में कन्याकुमारी में स्थित विवेकानंद राॅक मेमोरियल का जिक्र न हों,ऐसा संभव नहीं। हम में से बहुत लोग इस जगह पर जा चुके हैं और यहां के अद्भूत नजारे का आनंद ले चुके हैं। आज हम आपको इसी विवेकानंद राॅक के बारे में कुछ अहम बातें बताने जा रहे हैं।
बात सन् 1892 की है, जब स्वामी जी कन्याकुमारी आए थे। उस वक्त समुद्र के बीच एक चट्टान तक वो तैर कर गये और गहरी ध्यान की मुद्रा में बैठकर रात बिताई। यही वह स्थान है जहां साधना कर उन्हें जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति हुई थी। आज यह स्थान एक मशहूर टूरिस्ट स्पॉट है जहां हर रोज दुनिया भर से लाखों की तादात में लोग आते हैं।
तमिलनाडु के कन्याकुमारी के वावाथुरई में स्थित इस जगह पर विवेकानंद सन् 1893 में विश्व धर्म सभा में शामिल होने से पहले आए थे। समंदर के बीच विशाल शिला पर बैठकर एकान्त में उन्होंने गहरी साधना की और इससे उन्हें जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु मार्ग दर्शन मिला था। उनकी इस साधना का लाभ न केवल देशवासियों को बल्कि शिकागो में आयोजित धर्म सभा के जरिए पूरे विश्व को मिला।
इस घटना के कुछ समय के बाद यानि कि साल 1970 में जिस स्थान पर बैठकर उन्होंने साधना की उसी शिला पर एक भव्य स्मृति भवन का निर्माण किया गया जिसे देखने के लिए पूरे विश्व से लोगों का यहां आना-जाना लगा रहता है।
इसे बनाने के लिए लाल रंग के पत्थर का निर्माण किया गया है। यहां स्वामी विवेकानंद की साढ़े आठ फुट ऊंची एक प्रभावशाली मूर्ति भी है जिसे कांसे से बनाया गया है। समुद्र की लहरों से घिरी इस स्मारक की संरचना मंदिर, मस्जिद और चर्च तीनों की संरचना को मिलाकर की गई है।
यहां स्थान सनराइज और सनसेट दोनों के लिए ही मशहूर है। इसके साथ ही इस जगह की एक और खासियत है और वह ये कि कन्याकुमारी में तीन समुद्रों का संगम होता है। जी हां, बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिन्द महासागर का मिलन इसी स्थान पर होता है जिस वजह से इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि हर साल लगभग 20 से 25 लाख सैलानी इस जगह पर पहुंचती है और यहां के अद्भूत सौंदर्य को देखकर मोहित हो जाती है।