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गर्मी में टपकती है बारिश में सूख जाती है इस मंदिर की छत, वैज्ञानिक भी नहीं जान सके इसके पीछे का रहस्य

Published: Oct 04, 2018 05:09:14 pm

Submitted by:

Vinay Saxena

अक्सर आपने कई मंदिरों के बारे में कुछ रोचक बातें सुनी होंगी, लेकिन आज हम आपको ऐसे अजीबोगरीब मंदिरों के बारे में बता रहे हैं, जिसके बारे में जानकर शायद आप हैरान रह जाएंगे।

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गर्मी में टपकती है बारिश में सूख जाती है इस मंदिर की छत, वैज्ञानिक भी नहीं जान सके इसके पीछे का रहस्य

नई दिल्ली: अक्सर आपने कई मंदिरों के बारे में कुछ रोचक बातें सुनी होंगी, लेकिन आज हम आपको ऐसे अजीबोगरीब मंदिरों के बारे में बता रहे हैं, जिसके बारे में जानकर शायद आप हैरान रह जाएंगे। जी हां, क्या आपने कभी सुना है कि गर्मियों में किसी मंदिर की छत टपकती है। वहीं, बारिश में छत का टपकना बंद हो जाता है।
बारिश होते ही छत का टपकना हो जाता है बंद

उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कहे जाने वाले कानपुर जनपद के भीतरगांव विकासखंड से ठीक तीन किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है बेहटा। इसी बेहदा गांव में एक ऐसा भवन है, जिसकी बरसात की जगह भरी गर्मियों में छत टपकती है। वहीं, बारिश की शुरुआत होते ही इस मंदिर छत से पानी टपकना बंद हो जाता है। ये घटना है वास्तव में ही चौंका देने वाली है, लेकिन यह बात बिल्कुल सही है।यह घटनाक्रम किसी आम इमारत या भवन में नहीं बल्कि यह भगवान जगन्नाथ के अति प्राचीन मंदिर में यह घटनाक्रम देखने को मिलता है।
बूंदों के अाधार पर लगाया जाता है बारिश का अंदाजा


यहां छत के टपकने से बारिश की आहट हो जाती है। यहां के स्थानीय ग्रामीण निवासी बताते हैं कि ऐसा होने से यहां बारिश की आहट हो जाती है। बारिश होने के छह-सात दिन पहले मंदिर की छत से पानी की बूंदे टपकने लगती हैं। इतना ही नहीं जिस आकार की बूंदे टपकती हैं, उसी आधार पर बारिश भी होती है।
वैज्ञानिक भी नहीं जान पाए रहस्य

अब तो यहां के लोग मंदिर की छत टपकने को बारिश का संदेश समझने लगे हैं। स्थानीय निवासी ऐसा देख जमीनों को जोतने के लिए भी निकल पड़ते हैं। हैरानी में डालने वाली बात तो यह है कि जैसे ही बारिश शुरु होती है, छत अंदर से पूरी तरह सूख जाती है और इस बात का रहस्य आज तक वैज्ञानिक भी नहीं जान पाए हैं। मंदिर के पुजारी का कहना है कि पुरातत्व विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक कई बार यहां आए, लेकिन इसके रहस्य को नहीं जान पाए हैं। अभी तक बस इतना पता चल पाया है कि मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य 11वीं सदी में किया गया।

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