भगवान शंकर को भस्म चढ़ाने के बारे में पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि जब देवी सती ने अपने शरीर का त्याग कर दिया और भगवान शंकर उनके शरीर को अपने हाथों में उनके वियोग में थे इस दौरान भगवान विष्णु द्वारा देवी सती के शरीर को छिन्न-भिन्न कर दिया गया था और जिन स्थानों पर देवी सती के शरीर के अंग गिरे वहां आज भी देवी के शक्तिपीठ स्थापित हैं।
उसी दौरान भगवान शंकर का संताप दूर करने के लिए भगवान ने देवी सती के शरीर को भस्म में परिवर्तित कर भगवान शंकर के शरीर पर लगा दिया जिसे भगवान शिव ने देवी की अंतिम निशानी मानकर अपने शरीर पर लगा लिया।
वहीं भस्म को लेकर यह भी कहा जाता है कि जिस प्रकार भगवान शंकर विनाश और मृत्यु के देवता हैं, दुुनिया को मोह-माया का त्याग करने का संदेश देते हैं और जीवन के अंत में सब कुछ राख हो जाने के बारे में संदेश देते हैं। भगवान शंकर विध्वंस और विनाश के देवता है और राख भी एक प्रकार से विनाश यानी कि अंत को ही दर्शाती है इसलिए उनकी भस्म आरती की जाती है।
शरीर पर भस्म लपेटने का यही अर्थ है कि जीवन में कहीं भी घमंड की आवश्यकता नहीं है क्योंकि एक दिन सब कुछ भस्म हो जाएगा।