शादी वाले दिन दूल्हे की बहन गाजे-बाजे के साथ बारात लेकर दुल्हन के घर पहुंचती है। इतना ही नहीं वह दुल्हन के साथ सात फेरे भी लेती है। जबकि दूल्हा अपने घर में अकेले दुल्हन के आने का इंतजार करता है। ये अनोखी परंपरा गांव के आदिवासियों द्वारा निभाई जाती है। उनका मानना है कि ऐसा करने से नवदंपत्ति के बीच रिश्ता मधुर बनेगा। साथ ही उनके जीवन में किसी तरह की बाधाएं या संकट नहीं आएंगे।
ग्राम देवता को देते हैं सम्मान
दूल्हे की जगह उसकी बहन से दुल्हन की शादी कराने की इस प्रथा के पीछे एक धार्मिक मान्यता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सुरखेड़ा, सानदा और अंबल के ग्राम देवता अविवाहित हैं। इसलिए गांव वाले उन्हें सम्मान देने के लिए वे खुद लड़की से विवाह नहीं करते हैं। उनके बदले सारी रिवाज उसकी बहन पूरी करती है। माना जाता है कि ऐसा करने पर दूल्हा-दुुल्हन का वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है।
दूल्हे की जगह उसकी बहन से दुल्हन की शादी कराने की इस प्रथा के पीछे एक धार्मिक मान्यता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सुरखेड़ा, सानदा और अंबल के ग्राम देवता अविवाहित हैं। इसलिए गांव वाले उन्हें सम्मान देने के लिए वे खुद लड़की से विवाह नहीं करते हैं। उनके बदले सारी रिवाज उसकी बहन पूरी करती है। माना जाता है कि ऐसा करने पर दूल्हा-दुुल्हन का वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है।
नजरदोष से बचाव
गांव वालों का मानना है कि अगर दूल्हा-दुल्हन शादी के दिन एक-दूसरे से नहीं मिलते हैं तो उन्हें बुरी नजर नहीं लगती। साथ ही दूल्हे की बहन अगर भाभी को विदा कराकर घर लाती है तो इससे खुशहाली आती है। ऐसा करने से दंपत्ति के बीच कलेश नहीं होते। इससे उनका रिश्ता मधुर बनता है। साथ ही जीवन में आने वाली समस्याओं से भी बचाव होता है।
गांव वालों का मानना है कि अगर दूल्हा-दुल्हन शादी के दिन एक-दूसरे से नहीं मिलते हैं तो उन्हें बुरी नजर नहीं लगती। साथ ही दूल्हे की बहन अगर भाभी को विदा कराकर घर लाती है तो इससे खुशहाली आती है। ऐसा करने से दंपत्ति के बीच कलेश नहीं होते। इससे उनका रिश्ता मधुर बनता है। साथ ही जीवन में आने वाली समस्याओं से भी बचाव होता है।